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न्यूज क्लिपिंग्स् | सवा नौ करोड़ का भ्रष्टाचार, वसूली सिर्फ डेढ़ लाख रुपए

सवा नौ करोड़ का भ्रष्टाचार, वसूली सिर्फ डेढ़ लाख रुपए

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published Published on Jan 5, 2015   modified Modified on Jan 5, 2015
मनीष गोधा, जयपुर। राजस्थान में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) भ्रष्टाचार का बड़ा कारण बन रही है और इसके मामलों में कार्रवाई या वसूली का हाल बहुत खराब है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष मनरेगा के तहत 9.25 करोड़ की अनियमितताएं सामने आईं, जबकि वसूली सिर्फ 1.40 लाख रुपए की हुई। पिछले पांच साल में मनरेगा के तहत अनियमितताओं के मामलों में राजस्थान में 816 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है। इनमें जनप्रतिनिधि कम, ठेकेदार और कर्मचारी ज्यादा हैं।

राजस्थान में मनरेगा की शुरुआत काफी अच्छी हुई थी और प्रारंभिक सालों में राजस्थान को मनरेगा के क्रियान्वयन में अग्रणी राज्यों में माना गया था, लेकिन बाद में स्थिति खराब होती चली गई। वर्ष 2011-12 में सौ दिन का रोजगार पूरा करने वाले परिवारों की संख्या जहां पौने तीन लाख से ज्यादा थी, वह दिसंबर 2014 में घटकर 99 हजार रह गई और 94 लाख जॉब कार्डधारी परिवारों में से सिर्फ 32 लाख को काम मिल पा रहा है। ग्रामीण विकास की योजनाओं में मनरेगा को भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा केंद्र माना गया है और भ्रष्टाचार पर रोक के लिए मनरेगा के सामजिक अंकेक्षण की स्थिति बहुत अच्‍छी नहीं है।

लगभग तमाम जनप्रतिनिधि सामाजिक अंकेक्षण के खिलाफ है। दो वर्ष पहले प्रदेश के पंचायत प्रतिनिधियों ने इसके विरोध में जयपुर में बड़ा प्रदर्शन किया था और सरकार से इसकी व्यवस्था में बदलाव की मांग की थी। उस समय कई विधायक भी पंचायत प्रतिनिधियों के समर्थन में आ गए थे। यही कारण है कि अनियमितता के मामले सामने आने के बावजूद इन पर कार्रवाई या वसूली का आंकड़ा बहुत ही कम है।

सरकार के आंतरिक अंकेक्षण दलों ने वर्ष 2013-14 में दस जिलों की ग्राम पंचायतों में 9.25 करोड़ रुपए की अनियमितताएं पकड़ीं, लेकिन इतनी बड़ी राशि में से सिर्फ 1.40 लाख रुपए की वसूली हो पाई है। सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे कहते हैं कि यदि ढंग से सामाजिक अंकेक्षण और जांच हो तो यह आंकड़ा बहुत बढ़कर सामने आ सकता है, लेकिन यह नहीं होता। कैग ने सामाजिक अंकेक्षण के नियम दो साल पहले बना दिए थे, लेकिन ज्यादातर जगह उन नियमों के हिसाब से सामाजिक अंकेक्षण नहीं होता।

जनप्रतिनिधियों से ज्यादा कर्मचारी भ्रष्ट

मनरेगा में आमतौर पर जनप्रतिनिधियों पर अनियमितताााओं के आरोप लगते हैं, लेकिन राजस्थान में इस मामले में कर्मचारी आगे हैं। वर्ष 2010 से दिसंबर 2014 तक पुलिस में 179 जनप्रतिनिधियों, 278 कर्मचारियों और 360 अन्य लोगों, जिनमें ठेकेदार आदि सम्मिलित हैं, के खिलाफ मामले दर्ज कराए गए है। इनमें से गिरफ्तारी सिर्फ 252 लोगों की हो पाई है। राजस्थान के पंचायत राज मंत्री सुरेन्द्र गोयल इस स्थिति के लिए पिछली कांग्रेस सरकार को ही दोषी ठहराते हुए कहते हैं कि ये सारे मामले कांग्रेस सरकार के समय के हैं क्योंकि उस समय हालत बहुत खराब थी, लेकिन अब हम सिस्टम सुधार रहे हैं और वसूली पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है।


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