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न्यूज क्लिपिंग्स् | सावधान! नहीं तो मारे जाओगे

सावधान! नहीं तो मारे जाओगे

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published Published on Jul 3, 2012   modified Modified on Jul 3, 2012

नई दिल्ली। रोजमर्रा की जिंदगी में बढ़ते उतार-चढ़ाव, व्यस्तता, घरेलू झगड़े, अवैध संबंधों के दौरान गर्भधारण, करियर की उधेड़बुन, किस्तों का बोझ, रिश्तों में दरार.. ऐसे कुछ स्पष्ट कारण भारतीय जनजीवन में उभर कर सामने आए हैं, जो मानसिक तनाव को इस कदर बढ़ा रहे हैं कि लोग बेमौत मारे जा रहे हैं। जी हां, यह कहना है नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की एक अहम रिपोर्ट का। तमाम तरह के तनावों से जूझता भारत का युवा बड़ी संख्या में आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहा है। मेंटल इलनेस यानी सोचने समझने की शक्ति का कम हो जाना, इसकी मुख्य वजह है।

हर घंटे हो रहीं 16 आत्महत्याएं :

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में इन सब कारणों के चलते प्रत्येक घंटे 16 लोग आत्महत्या करते हैं। 2011 में कुल 1 लाख 35 हजार लोगों ने आत्महत्या की। इसमें से करीब आधी मेंटल इलनेस की वजह से की गईं। यह आंकड़ा डरा देने वाला है। साथ ही सचेत करने वाला भी। जी हां, यह महज आंकड़ा या खबर मात्र नहीं है। यदि आप भी युवा हैं और करियर, घर-गृहस्थी व रिश्तों की टूटती कड़ी के बीच झूल रहे हैं तो सावधान हो जाइए। जिंदगी जिंदादिली से जीने का नाम है। खुद को मार देने सबकुछ खत्म नहीं हो जाता। आपका दर्दनाक इतिहास पीछा नहीं छोड़ता है। वह उनके जहन में नासूर बन कर हरा रहता है, जो आपके अपने हैं। मां-बाप, भाई-बहिन, रिश्तेदार, मित्र और उन तमाम आत्मीय जनों को आपके इस इतिहास का बोझ जिंदगी भर वहन करना पड़ता है, जो खुद को मार नहीं सकते और जिंदगी भर मर-मर कर जीने को बाध्य हो जाते हैं। तो खुद को दर्दनाक इतिहास मत बन जाने दें। जिंदगी को जिएं और समस्याओं का हल निकालें।

मेंटल इलनेस है सबसे बड़ी समस्या :

जी हां, यदि आप जिंदगी की दौड़ में खुद को पिछड़ा हुआ मान बैठे हैं और जीवन की कई उलझनों के सामने घुटने टेक रहे हैं, तो ऐसे में आपको जरूरत है मेंटल टफनेस की। अपने आप में बेहद दिलचस्प पहलू है कि कोई यह मानने को कभी तैयार ही नहीं होता कि वह मेंटल इलनेस का शिकार हो चुका है। मेंटल इलनेस का मतलब लोग पागलपन से लगा बैठते हैं। जाहिर है कि कोई भी खुद को पागल नहीं मान सकता। यहीं से सारी समस्या शुरू हो जाती है और नतीजा एक दर्दनाक अंत के रूप में सामने आता है। लिहाजा जरूरत है मेंटल इलनेस को पहचानने और उससे निजात पाने की। आपको बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कई बार भारत को यह चेतावनी दे चुका है कि यहां मेंटल इलनेस एक विकराल समस्या बनती जा रही है। भारत सरकार ने मेंटल इलनेस के प्रति लोगों को जागरूक बनाने के लिए पिछले कुछ समय से देशव्यापी अभियान चला रखा है। लेकिन लोग इसे समझ नहीं पा रहे हैं। शायद वे ये समझ ही नहीं पाते कि उनकी तमाम समस्याओं की जड़ में खुद वे ही हैं और उनकी कमजोर पड़ती सोच-समझ है। डिप्रेशन यानी अवसाद भारत में विकराल समस्या बन चुका है। बड़ी संख्या में युवा इसकी चपेट में हैं, लेकिन जब तक इसकी पहचान हो पाती है कि उन्हें समस्या क्या है, बहुत देर हो चुकी होती है।

क्या हैं लक्षण मेंटल इलनेस के :

1.चिढ़चिढ़ा स्वभाव हो जाना

2.नींद न आना

3.अचानक वजन कम होना

4.सिर दर्द बना रहना

5.छोटी-छोटी बातों पर आपा खोना

6.सामाजिक सरोकारों से दूर भागना

7.उलझन में बने रहना

8.सकारात्मक सोच की कमी

9.जिंदगी की उलझनों का सामना करने से डरना-झिझकना

10.भविष्य को लेकर बहुत अधिक चिंतित रहना

11.लक्ष्णों के बावजूद खुद को डिप्रेशन या मेंटल इलनेस का पीड़ित न मानना

12.इलाज कराने में लापरवाह रवैया अपनाना

13.छोटी-छोटी चीजों को कल पर टालना

14.खाने में लापरवाही बरतना

15.घूमने-फिरने में रुचि कम हो जाना

करियर की किच-किच से घरेलू कलह तक :

वर्ष 2011 से अब तक कुल 1.35 लाख लोग आत्महत्या के शिकार बन चुके हैं। आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर विवाहित शामिल हैं। आत्महत्या करने वालों में 38 फीसद निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोग है। सरकारी नौकरी करने वाले लोगों की संख्या काफी कम हैं। इसमें आपसी घरेलू झगड़े व पारिवारिक समस्याएं समेत आय-व्यय में भारी असमानता शामिल हैं। यह सभी कारण मानसिक असंतोष को जन्म देते हैं। जिसकी वजह से वह इस तरह के कदम उठाने पर मजबूर हो जाता हैं। मौजूदा दौर में आय के स्त्रोत बढ़ाने के लिए पति-पत्नी का काम पर जाना बेहद आम हो गया है। यह ना सिर्फ उनकी पारिवारिक जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी हैं, बल्कि उनकी आर्थिक हालत में सुधार को बेहद मायने रखता हैं, लेकिन यह सब पारिवारिक कलह का भी कारण बन रहा हैं। पारिवारिक कलह व मानसिक असंतोष के अलावा अवैध गर्भावस्था भी आत्महत्या के मुख्य कारणों में शामिल हैं। यही नहीं वर्ष 2011 में अवैध संबंधों के दौरान गर्भाधारण से आत्महत्या करने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। कम उम्र में बढ़ रहे यौन संबंधों के मामले भी आत्महत्या करने का एक कारण है। इसके चलते कम उम्र में अनचाही प्रेगनेंसी हो जाना आत्महत्या का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है।

बड़े शहरों में ज्यादा मामले :

देश के बड़े शहर जिनमे दस लाख की आबादी वाले शहर जैसे चैन्नई, बेंगलूर, दिल्ली, मुंबई और चंडीगढ़ में कुल मामलों के 36 फीसद आत्महत्या के मामले सामने आए हैं। चेन्नई में वर्ष 2011 में कुल 2,438 मामले, बेंगलूर में 1,717, दिल्ली में 1,385 एंव मुंबई में 1,162 केस दर्ज हुए हैं। राज्यों की बात करें तो राजस्थान में पारिवारिक कलह व मानसिक असंतोष के चलते आत्महत्या के सबसे अधिक मामले सामने आएं हैं। आंकड़ों के मुताबिक सामाजिक-आर्थिक कारणों की वजह से ही ज्यादातर युवा आत्महत्या करते हैं, लेकिन महिलाएं कहीं ना कहीं भावुक होकर भी ऐसे फैसले ले लेती हैं। भारत में आत्महत्या करने वाले राज्यों में पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र सबसे आगे हैं। इन राज्यों में वर्ष 2011 के दौरान आत्महत्या के कुल मामलों के 56 फीसद सामने आए हैं।


http://www.jagran.com/news/national-report-suicide-9427229.html


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