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न्यूज क्लिपिंग्स् | सुरक्षा कवच: पंचायत प्रतिनिधियों को राहत, मुखिया पर केस मंत्री की अनुमति के बिना नहीं

सुरक्षा कवच: पंचायत प्रतिनिधियों को राहत, मुखिया पर केस मंत्री की अनुमति के बिना नहीं

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published Published on Nov 12, 2014   modified Modified on Nov 12, 2014
पटना: राज्य सरकार ने मुखिया, उपमुखिया सहित ग्राम पंचायत के सदस्यों को सुरक्षा कवच प्रदान किया है. अब मुखिया, उपमुखिया व पंचायत सदस्यों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार की अनुमति जरूरी होगी.

यानी पंचायती राज मंत्री की इजाजत पर ही मुखिया के खिलाफ मुकदमा चलेगा. इसके साथ ही सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही या छोटी-मोटी गलती पर उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं की जायेगी और शिकायतों की जांच एसडीओ से नीचे का कोई अफसर नहीं करेगा. पंचायती राज विभाग ने पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर नयी गाइडलाइन जारी की है. इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि कार्रवाई के मामले में लोक सेवकों के लिए तय मानक ही पंचायत प्रतिनिधियों पर भी लागू होंगे.

मुखिया संघ ने की थी मांग
पंचायती राज मंत्री विनोद प्रसाद यादव ने बताया कि मुखिया संघ की मांग और पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के वादे के अनुसार विभाग ने पंचायत जनप्रतिनिधियों को सुरक्षा कवच प्रदान करने का निर्णय लिया गया है. विभाग के प्रधान सचिव शशिशेखर शर्मा की ओर से सभी प्रमंडलीय आयुक्तों और डीएम को भेजी गयी नयी गाइडलाइन के मुताबिक, बिहार पंचायती राज अधिनियम, 2006 की धारा 170 के अधीन त्रिस्तरीय पंचायतों के प्रतिनिधियों, पदाधिकारियों व कर्मियों को आइपीसी, 1860 की धारा 21 के तहत लोक सेवक घोषित किया गया है. कोई दुराचार या नियम विरुद्ध कार्य करने पर पंचायत प्रतिनिधि भी उसी तरह से कानून के घेरे में आयेंगे, जिस तरह से अन्य लोक सेवक आते हैं. निर्वाचित मुखिया या उपमुखिया को आरोपों के आधार पर बिना सरकार की मंजूरी के पद से नहीं हटाया जा सकता, वैसे में पद पर रहते हुए उनके द्वारा किये गये कर्तव्यों के निर्वहन में किसी तरह का अपराध करने पर उनके विरुद्ध अभियोजन चलाने के पहले राज्य सरकार की मंजूरी आवश्यक है.

हालांकि संTMोय अपराध और गबन व भ्रष्टाचार के मामले में प्राथमिकी दर्ज करने और अनुसंधान करने की पुलिस को छूट दी गयी है. इसके लिए किसी सक्षम प्राधिकार से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी. लेकिन, आरोपपत्र दाखिल करने के पहले सरकार से अनुमति लेनी होगी. अन्यथा ऐसे मामलों में कोर्ट भी आरोपपत्र पर संज्ञान नहीं लेगा. पत्र में कहा गया कि अपने कार्यो के निर्वहन में पंचायत प्रतिनिधि द्वारा राशि के अपव्यय या दुरुपयोग की संभावना बनती है. जो प्रतिनिधि दुराचार, गबन या अन्य नियम विरुद्ध कार्यो में संलिप्त पाये जाते हैं, तो उनके विरुद्ध नियमानुसार कार्रवाई का पूर्ण औचित्य बनता है. लेकिन, ऐसी कोई भी कार्रवाई करने के पहले यह आश्वस्त हो लेना आवश्यक है कि संबंधित प्रतिनिधि द्वारा एक लोकसेवक से अपेक्षित आचरण के विरुद्ध कार्य किया गया है.

कार्रवाई को लेकर नयी गाइडलाइन जारी
सरकारी राशि के गबन या भ्रष्टाचार की शिकायत का साक्ष्य पाये जाने पर संबंधित डीएम पंचायत प्रतिनिधियों के विरुद्ध प्राथमिकी का आदेश देंगे.

प्राथमिकी दर्ज कराने के पहले यह जानना आवश्यक है कि आरोपित व्यक्ति का दोष प्रशासनिक नियमों की अवहेलना का है या आपराधिक प्रवृत्ति का. प्रशासनिक लापरवाही में स्पष्टीकरण पूछा जायेगा या चेतावनी दी जायेगी.

जानबूझ कर चूक या सरकार के निर्देशों की उपेक्षा पर पंचायत प्रतिनिधियों के विरुद्ध आरोपपत्र गठित कर पंचायती राज विभाग को सूचित किया जायेगा, उसके आगे की कार्रवाई विभाग के स्तर से होगी.

शिकायत संबंधित बीडीओ, एसडीओ, जिला पंचायती राज पदाधिकारी, डीडीसी या डीएम के पास की जा सकती है, पर इसकी जांच एसडीओ या इससे ऊपर के अधिकारी द्वारा ही की जायेगी.

जिला पर्षद से संबंधित मामले की शिकायत संबंधित जिला दंडाधिकारी या प्रमंडलीय आयुक्त के यहां दर्ज करायी जायेगी, पर जांच आदेश के लिए सक्षम प्राधिकारी प्रमंडलीय आयुक्त होंगे.

कोई भी शिकायत मिलने के 90 दिनों के भीतर जांच कार्य पूरा कर लिया जायेगा. मिट्टी से जुड़े मामलों की जांच एक माह के भीतर और बरसात शुरू होने के पहले हर हाल में होगी.

गड़बड़ी की जवाबदेही तय करने में सरकारी कर्मियों को भी जांच के दायरे में रखना होगा. उनके खिलाफ भी कार्रवाई होगी.


http://www.prabhatkhabar.com/news/bihar/safety-shield-panchayat-representatives-relief-without-the-permission-of-chief-on-the-case-minister/176881.html


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