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न्यूज क्लिपिंग्स् | हमारे दौर में समृद्धि का पैमाना- राजीव रंजन झा

हमारे दौर में समृद्धि का पैमाना- राजीव रंजन झा

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published Published on Nov 13, 2013   modified Modified on Nov 13, 2013
मुझे अपने बचपन का वह दिन अच्छी तरह याद है, जिस दिन मुझे अपनी साइकल मिली थी. तारीख नहीं याद, मगर उस दिन की खुशी याद है. आज मुझे ठीक-ठीक याद नहीं कि मेरी साइकल पहले आयी थी या पिताजी की मोटरसाइकल. लेकिन, दोनों के बीच शायद एकाध-साल का ही फर्क रहा होगा. मुझे वह दिन भी याद है, जिस दिन मैंने पहली बार टेलीविजन देखा था. उस दिन की तो मैं तारीख भी बता सकता हूं, क्योंकि टेलीविजन पर मैंने जो पहला कार्यक्रम देखा वह साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनकी शवयात्र और अंतिम संस्कार का लाइव प्रसारण था. लेकिन वह टेलीविजन मेरे घर में नहीं था, बल्कि पड़ोस के सिंह चाचा का था.

इसके बाद कई बार गुरुवार और रविवार को आनेवाली फिल्म या फिर बुधवार और शुक्रवार को आने वाले चित्रहार को देखने के लिए सिंह चाचा के घर चला जाता था. फिर पिताजी के सामने मेरी महीनों तक चली जिद के बाद मेरे घर में भी एक टीवी आ गया. ये वो दिन थे, जब रेफ्रिजरेटर हमारे घर की जरूरत नहीं बना था. गर्मियों में हमारा काम घड़े के ठंडे पानी से चल जाता था.

इन सारी चीजों की याद मुझे इसलिए आयी कि क्रिसिल की एक ताजा रिपोर्ट में विकास के पैमाने के रूप में ऐसी ही तमाम चीजों को गिना गया है. कौन राज्य ज्यादा विकसित है, इसका क्रम तय करने के लिए इस रिपोर्ट में क्रिसिल ने उपभोक्ता सामानों के स्वामित्व को आधार बनाया है. इन चीजों में टेलीविजन, कंप्यूटर, मोबाइल और रेडियो से लेकर कार-जीप, मोटरसाइकल और साइकल तक शामिल हैं.

समृद्धि सूचकांक में कोई राज्य ऊपर हो, इसके लिए जरूरी है कि वहां टीवी, कंप्यूटर-लैपटॉप, टेलीफोन-मोबाइल और दोपहिया-चारपहिया रखनेवाले घरों का अनुपात ज्यादा हो. साथ ही इसमें यह भी देखा जाता है कि इन चारों श्रेणियों के अलावा रेडियो और साइकल तक नहीं रखनेवाले घरों का अनुपात कम हो. लेकिन, इसमें वित्तीय संपत्तियों, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य के मानकों को शामिल नहीं किया गया है. कारण सीधा-सा यह लगता है कि इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है. इस जनगणना में पहली बार उपभोक्ता वस्तुओं के स्वामित्व के भी आंकड़े जुटाये गये थे. लेकिन जनगणना में वित्तीय संपत्तियां, मकान का स्वामित्व, शिक्षा और स्वास्थ्य के आंकड़े नहीं होते.

इस सीमा के बावजूद यह रिपोर्ट भारत के विभिन्न राज्यों के विकास को समझने के लिए एक नयी समझ देती है. आम तौर पर लोग राज्यों को प्रति व्यक्ति आय के पैमाने पर देखते हैं. इस पैमाने पर महाराष्ट्र सबसे आगे दिखता है. इसके बाद हरियाणा और गुजरात का स्थान आता है. लेकिन प्रति व्यक्ति आय के पैमाने पर शीर्ष पांच में जगह नहीं बना पानेवाला पंजाब उपभोक्ता वस्तुओं के स्वामित्व के आधार पर तैयार किये गये समृद्धि सूचकांक में सबसे ऊपर दिखता है.

क्रिसिल की इस रिपोर्ट में समृद्धि सूचकांक के साथ-साथ समानता सूचकांक भी बनाया गया है. इसका पैमाना यह है कि राज्य की राजधानी से शेष हिस्सों के बीच के जीवन-स्तर में कितना अंतर है. यह अंतर जितना कम होगा, वह राज्य समानता सूचकांक में उतना ऊपर होगा.

आजकल हर बहस के केंद्र में गुजरात खुद-ब-खुद आ जाता है. प्रति व्यक्ति आय के पैमाने पर गुजरात तीसरे स्थान पर है, और समृद्धि सूचकांक में यह तमिलनाडु के साथ पांचवें स्थान की साङोदारी कर रहा है. लेकिन अगर समानता सूचकांक देखें, तो यह शीर्ष पांच में स्थान नहीं बना पाया है और यह सातवें स्थान पर है.

तो प्रश्न यह है कि विकास का बेहतर पैमाना क्या है? क्या हम इसे प्रति व्यक्ति आय के आधार पर मापें, जिसमें महाराष्ट्र अव्वल है? क्या हम इसे टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं के स्वामित्व के आधार पर बने समृद्धि सूचकांक के आधार पर मापें, जिसमें पंजाब सबसे आगे है? या फिर हम समानता सूचकांक को देखें, जिसमें केरल सबसे अच्छी स्थिति में है?

इन तीनों में से आप जिस भी आधार पर विकास मापेंगे, वह अधूरा होगा. अगर आप इन तीनों बातों को जोड़ कर देखें, तो भी कई महत्वपूर्ण बातें सामने आने से रह जायेंगी. सबसे ज्यादा बेघर लोगों वाला, सबसे अधिक अशिक्षित लोगों वाला, सबसे ज्यादा कुपोषित और जन-सामान्य के लिए सबसे कम स्वास्थ्य सुविधाओं वाला राज्य भी इन तीनों में से किसी पैमाने पर काफी अच्छा नजर आ सकता है, क्योंकि इन तीनों में से किसी में इन पहलुओं पर गौर ही नहीं किया गया है.

फिर भी, इतना जरूर कहा जा सकता है कि केवल प्रति व्यक्ति आय के पैमाने पर विकास को देखने के बदले समृद्धि सूचकांक और समानता सूचकांक हमें तसवीर का एक नया पहलू दिखा पाते हैं. किसी घर में पहली बार एक टीवी का आना, मोटरसाइकल का आना या फिर कार का आना केवल एक और सामान घर आ जाना भर नहीं होता. यह उस घर के लिए वास्तव में विकास के क्रम में एक सीढ़ी ऊपर चढ़ जाने का संकेत होता है. इसलिए क्रिसिल की यह रिपोर्ट में हमें प्रति व्यक्ति आय के भ्रामक आंकड़े से आगे बढ़ कर तस्वीर को और करीब से देखने का मौका देती है.

क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में चार तरह के राज्यों के वर्ग बनाये हैं. पहला वर्ग है, जो समृद्धि सूचकांक और समानता सूचकांक- दोनों में ऊंचे पायदानों पर हैं. इस वर्ग में पंजाब, केरल और गुजरात आते हैं. दूसरा वर्ग उनका है, जो समृद्धि सूचकांक में तो आगे हैं, मगर समानता सूचकांक में पीछे हैं. इनमें हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु हैं. तीसरे वर्ग में समृद्धि सूचकांक में पिछड़े, लेकिन समानता सूचकांक में अच्छे क्रम वाले राज्य रखे गये हैं. इनमें झारखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ प्रमुख हैं. वहीं सबसे बुरी स्थिति वहां हैं, जो समृद्धि में भी पीछे हैं और समानता में भी. इस श्रेणी में आने वाले राज्य हैं आंध्र प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा और मध्य प्रदेश.

मौजूदा राजनीतिक परिवेश में स्वाभाविक लालच यह विेषण करने का होगा कि इन दोनों सूचकांकों के आधार पर कांग्रेस शासित राज्य अच्छा कर रहे हैं या भाजपा या अन्य दल के. लेकिन मैं इस स्वाभाविक लालच से बचना चाहूंगा.

http://www.prabhatkhabar.com/news/62234-story.html


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