Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | हिंदू राष्ट्रवाद को चुनौती देना चाहते हैं ये दलित ब्रैंड्स

हिंदू राष्ट्रवाद को चुनौती देना चाहते हैं ये दलित ब्रैंड्स

Share this article Share this article
published Published on Jan 5, 2020   modified Modified on Jan 5, 2020
दक्षिण मुंबई में एक महंगे रीटेल स्टोर में जिस समय शहर के संपन्न लोग दलित उद्धार और 'बहिष्कृत लोगों' व फ़ैशन की दुनिया के मेल पर बात कर रहे थे, 32 साल के सचिन भीमा सखारे बाहर एक कोने में खड़े थे.

ये सब हो रहा था बीते पाँच दिसंबर को. सचिन भीमा सखारे बताते हैं कि स्टोर में हुए इवेंट में 'चमार फ़ाउंडेशन' के सदस्यों द्वारा बनाए गए रबर के 66 बैग बिके.

भीमा सखारे जानवरों की खाल से जुड़े काम करने वाले अनुसूचित जाति से उन 10 सदस्यों में से एक हैं जो सब्यसाची, राहुल मिश्रा और गौरव गुप्ता जैसे डिज़ाइनर्स के साथ एक प्रोजेक्ट के लिए जुड़े हैं. इस प्रोजेक्ट के तहत ही ये चुनिंदा ख़ास बैग तैयार किए गए थे.

इनकी बिक्री से मिलने वाला पैसा हाल ही में शुरू किए गए चमार फ़ाउंडेशन को जाएगा जो वकोला और सैंटा क्रूज़ में डिज़ाइन स्टूडियो खोलेंगे.

यहां महिलाओं और पुरुषों को 'चमड़े की सिलाई' की बारीकियों की ट्रेनिंग दी जाएगी और फ़ाउंडेशन के रबर बैग बनाने के काम से जोड़ा जाएगा. इन बैगों में 'मेड इन स्लम्स' की टैगलाइन लगी होगी.

इसका मक़सद अपमानजनक समझने जाने वाले जातिसूचक शब्द 'चमार' को फ़ैशन ब्रैंड बनाकर उसका गौरव बढ़ाना है. भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति के लिए 'चमार' शब्द इस्तेमाल करने को प्रतिबंधित किया हुआ है.

भीमा सखारे कहते हैं, ''चमार मतलब चमड़ा, मांस और रक्त. ये सब हर जीव का हिस्सा हैं. फिर हमारे काम की वजह से क्यों हमें हेय दृष्टि से देखा जाता है?"

दलित ब्रैंड और दलित चेतना

बहुजन शॉप से लेकर जय भीम ब्रैंड और रबर के बैगों के ज़रिये देशभर में नए आर्थिक मॉडल के तहत दलित पहचान को स्थापित करने की कोशिश की जा रही है.

यह नया आर्थिक मॉडल इस विश्वास पर आधारित है कि अगर दलित समुदाय दलित पहचान वाले उन ब्रैंड्स को स्वीकार करता है जो दलितों द्वारा बनाए गए हैं तो इससे मिलने वाला पैसा दलित समुदाय के लोगों को आर्थिक स्वतंत्रता देगा और उन्हें सियासी फलक में भी अपनी जगह बनाने में आसानी होगी.

पिछले कुछ सालों में उभरे दलित ब्रैंड भारत की जाति व्यवस्था को चुनौती देने और सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत करने के लिए राजनीति और अर्थव्यवस्था का मिश्रण कर रहे हैं. इसके लिए एक रणनीति के तहत अपने समुदाय के साथ जुड़े 'जय भीम' और 'बहुजन' जैसे शब्दों को इस्तेमाल किया जा रहा है.

2014 के चुनावों को बहुत से दलित हिंदुत्ववादी ताक़तों की जीत के रूप में देखते हैं. इन चुनावों के बाद से उनमें अलग-थलग पड़ जाने का डर महसूस किया जा सकता है.

दलित समुदाय के लोगों का कहना है कि राजनीतिक ध्रुवीकरण और दलित मध्यमवर्ग के उदय के कारण ही दलित ब्रैंडिंग का उदय हुआ है.

दलित लेखक और समाजसेवी चंद्रभान प्रसाद कहते हैं, "यह दलितों द्वारा अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने की कोशिश का एक नया रूप है. 2014 में हिंदुत्व की जीत समाज को फिर से बांट रही है और दलितों को अलग-थलग कर दिए जाने का एक नई क़िस्म का डर पैदा हो गया है. इसलिए 'बी दलित, बाय दलित' जैसी ब्रैंडिंग आधुनिक दलित चेतना का प्रतीक बन रही है."

सुधीर राजभर उत्तर प्रदेश के जौनपुर से हैं और भर समुदाय से ताल्लुक़ रखते हैं. वह चमार स्टूडियो और चमार फ़ाउंडेशन के संस्थापक हैं. उनका इरादा अपने लेबल के माध्यम से फ़ैशन के क्षेत्र में दाख़िल होना है. लंबे समय तक इसमें बने रहने के लिए उन्होंने चमड़े की जगह रबर इस्तेमाल करने की रणनीति अपनाई है.
 
पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 

चिंकी सिंहा, https://www.bbc.com/hindi/india-50972169


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close