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न्यूज क्लिपिंग्स् | ‘भारत में आजादी’ का अर्थ-- रविभूषण

‘भारत में आजादी’ का अर्थ-- रविभूषण

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published Published on Mar 14, 2016   modified Modified on Mar 14, 2016
आजादी की लड़ाई में आजादी के स्वरूप और उसकी अवधारणा को लेकर बीसवीं सदी के बीस के दशक के मध्य से जो विचार-मंथन आरंभ हुआ था, वह 1947 की अधूरी राजनीतिक आजादी या सत्ता-हस्तांतरण के कुछ वर्ष बाद थम गया. रुक-रुक कर वास्तविक और मुकम्मल आजादी की बातें हुईं. ‘संपूर्ण क्रांति' का आंदोलन भी हुआ, पर कुछ समय बाद ही न उसमें गति रही, न शक्ति, और न इच्छाशक्ति ही रही.

चौरी-चौरा कांड (1922) के बाद गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था. गया कांग्रेस (1922) में रामप्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों ने उनका विरोध किया था. कांग्रेस दो भागों (उदारवादी और विद्रोही) में विभाजित हो गयी. 

मोतीलाल नेहरू और चित्तरंजन दास के नेतृत्व में नयी स्वराज पार्टी (1923) गठित हुई और युवा ग्रुप ने बिस्मिल के नेतृत्व में एक क्रांतिकारी पार्टी गठित की. बिस्मिल ने इस पार्टी का संविधान लाला हृदयलाल की सहमति से सच्चिदानाथ सान्याल और डॉ जदुगोपाल मुखर्जी की सहायता से तैयार किया.

पार्टी का नाम हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (एचआरए) रखा गया. जनवरी 1925 में ‘रिवोल्यूशनरी' शीर्ष से पार्टी का घोषणापत्र प्रकाशित हुआ, जिसमें ‘शोषणकारी सभी व्यवस्थाओं के उन्मूलन' की बात कही गयी थी. इस पार्टी के गठन के बाद ही केशव बलिराम हेडगेवार ने 27 सितंबर (विजयादशमी) 1925 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना की. तीन महीने बाद 25 दिसंबर, 1925 को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म हुआ. 

वर्ष 1925 का विशेष महत्व है. हेडगेवार हिंदू राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर (28 मई 1883-26 फरवरी 1966) से प्रभावित थे. आरएसएस का एकमात्र लक्ष्य हिंदू राष्ट्र निर्माण है. इसकी छात्र शाखा का जन्म राजनीतिक दल (भारतीय जनसंघ) के पहले 1948 में हुआ. छात्र संगठन के रूप में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) का पंजीयन 9 जुलाई, 1949 को हुआ. इस छात्र-संगठन के 12-13 वर्ष पहले 12 अगस्त, 1936 को लखनऊ में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का छात्र-संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन (एआइएसएफ) गठित हो चुका था.

हम जिस आजाद भारत में रहते हैं, उस आजाद भारत के कायल अशफाकउल्ला खां, भगत सिंह, गणेश शंकर विद्यार्थी और प्रेमचंद नहीं थे. भगत सिंह ने स्वतंत्रता को कभी खत्म न होनेवाला ‘सबका जन्म सिद्ध अधिकार' का था. उन्होंने और प्रेमचंद ने साफ शब्दों में उस आजादी की बात की थी, जिसमें किसी प्रकार की शोषणकारी-आतंककारी व्यवस्था न हो. 

‘जान' की जगह ‘गोविंद' के बैठ जाने से आजादी प्राप्त नहीं होती. अशफाकउल्ला खां और भगत सिंह को फांसी दी गयी. गणेश शंंकर विद्यार्थी की हत्या कानपुर के सांप्रदायिक दंगे में हुई और प्रेमचंद ब्रिटिश भारत में प्रांतीय चुनाव (1936-37) का परिणाम देखने से पहले दिवंगत हुए.

आजादी के 68 वर्ष बाद कन्हैया कुमार ने आजादी का नारा क्यों लगाया है? एक अरब तीस करोड़ की आबादी क्या सचमुच सब तरह से आजाद है? आजादी का असली लाभ किसे मिला है? दुनिया में भारतीय अरबपति चौथे स्थान पर है और शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी, बेरोजगारी में हमारे देश का स्थान कहां है? क्यों लाखों करोड़ रुपये कॉरपोरेटों को सब्सिडी दी जाती है? क्यों भारतीय उद्योगपति और कॉरपोरेटों पर बैंकों का लाख करोड़ से अधिक कर्ज है? क्यों विजय माल्या से बैंक ऋण वसूल नहीं कर पाते? क्यों तीन दिनों के (11-13 मार्च) रविशंकर के विश्व सांस्कृतिक कार्यक्रम में सेना सहयोग करती है? ‘साधारण जन की पीड़ा' की बात जयशंकर प्रसाद 1918 में कर रहे थे. 

उनका चंद्रगुप्त नाटक में जिस ‘स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता' की बात करती है, क्या हमने वह प्राप्त कर ली? क्या हमें भारत में गरीबी, भुखमरी, बेकारी, सामाजिक-आर्थिक अन्याय, असमानता, भय, आतंक, असहिष्णुता, अशिक्षा, कुपोषण, शोषण, अपसंस्कृति, लूट, झूठ, फूट, कट्टरता, ब्राह्मणवाद, पुरोहितवाद, संप्रदायवाद, अमेरिकी साम्राज्यवाद, नवउपनिवेशवाद, पृथकतावाद, संघवाद, ब्रिटिश कालीन भारतीय दंड संहिता और मनुवाद से आजादी नहीं चाहिए? क्या सचमुच राजनीतिक दलों ने कन्हैया कुमार की आवाज और मांग सुनी है? यह एक व्यक्ति की मांग नहीं, बल्कि 90 करोड़ भारतीयों की मांग है.

http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/738693.html


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