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औपनिवेशिक दंश झेलती जनजातियां-- प्रमोद मीणा

वर्ष 1871 में औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश सरकार ने भारत की कुछ खानाबदोश और अर्द्ध खानाबदोश जनजातियों को आपराधिक जनजाति अधिनियम (क्रिमिनल ट्राइबल एक्ट) पारित करके जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया। मुख्यधारा के समाजों से दूर रहने वाली इन जनजातियों को पुश्तैनी रूप से अपराधी मानते हुए उन्हें गैर-जमानती अपराध के दायरे में ला दिया गया। इन जनजातीय समुदायों में थे बावरिया, पारधी, कंजर, सांसी, बंजारा, गरासिया, सहरिया आदि। ये...

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बड़े बांध का बड़ा विरोध-- नवीन जोशी

कई तकनीकी एवं कानूनी रुकावटों और लंबे जन-आंदोलनों के बावजूद सरदार सरोवर बांध अंतत: अपनी पूरी ऊंचाई के साथ हकीकत बन गया. मगर ‘एक आदिवासी के विस्थापन की तुलना में सात आदिवासियों को लाभ पहुंचाने' के दावे वाले, दुनिया के दूसरे सबसे बड़े इस बांध के उद्घाटन के साथ बड़े बांधों के व्यापक नुकसान की चर्चा थम नहीं गयी है.    बड़े बांधों के खिलाफ आवाज बुलंद करनेवालों के तेवर और...

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मेड और मैडम का वर्ग संघर्ष-- आशुतोष चतुर्वेदी

दिल्ली से सटे नोएडा से कुछ दिनों पहले खबर आयी कि घरेलू दाइयों, जिन्हें अंगरेजी में लोग ‘मेड' कहते हैं और ‘मैडम' लोगों में संघर्ष हो गया. यह अपने तरह की अलग घटना है. दाइयां घरों में काम करती रहती हैं. उनकी ओर न तो समाज का और न ही सरकारों का ध्यान जाता है. इन घरेलू सहायकों के बिना उच्च और मध्य वर्ग का जीवन कितना कठिन हो...

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आधी आबादी के बिना कैसे पूरा हो विकास का सपना

गत महीने फेसबुक द्वारा किये एक सर्वे में यह बात सामने आयी कि भारत में हर पांच में से चार महिलाएं उद्यमी बनने की क्षमता रखती हैं, बशर्ते उनके सशक्तीकरण के प्रयास किये जायें. शोध के मुताबिक यदि अभी से शुरुआत की जाये, तो वर्तमान व्यवसाय और रोजगार के समस्त लक्ष्यों को सिर्फ 52 फीसदी महिलाओं के दम पर ही वर्ष 2021 तक ही पूरा किया जा सकता है. फिर...

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कभी अंधेरा, तो कभी टापू में बसर करते है खरगोन जिले में वड़ियावासी

खरगोन/भगवानपुरा। विवेक वर्द्धन श्रीवास्तव/इसहाक पठान। विकसित प्रदेश का ढिंढोरा पीटने वाली सरकारें शहर से कभी ग्रामीण क्षेत्र में झांककर नहीं देख सकी। खरगोन जिले के कई पिछड़े गांवों में से एक गांव है वड़िया। भगवानपुरा जनपद अंतर्गत गोपालपुरा पंचायत का हिस्सा वड़िया आज भी पिछड़ेपन की जिंदगी जीने को बेबस है। पिछले 70 सालों में कोई 700 आवेदन दिए। नतीजा सिफर रहा।   यहां न पर्याप्त बिजली है और ना सड़क। अस्पताल...

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