Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | औपनिवेशिक दंश झेलती जनजातियां-- प्रमोद मीणा

औपनिवेशिक दंश झेलती जनजातियां-- प्रमोद मीणा

Share this article Share this article
published Published on Oct 3, 2017   modified Modified on Oct 3, 2017
वर्ष 1871 में औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश सरकार ने भारत की कुछ खानाबदोश और अर्द्ध खानाबदोश जनजातियों को आपराधिक जनजाति अधिनियम (क्रिमिनल ट्राइबल एक्ट) पारित करके जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया। मुख्यधारा के समाजों से दूर रहने वाली इन जनजातियों को पुश्तैनी रूप से अपराधी मानते हुए उन्हें गैर-जमानती अपराध के दायरे में ला दिया गया। इन जनजातीय समुदायों में थे बावरिया, पारधी, कंजर, सांसी, बंजारा, गरासिया, सहरिया आदि। ये जनजातियां समाज की मुख्यधारा की तरह किसी एक स्थान पर नहीं रहा करती थीं, बल्कि अपनी आजीविका के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान तक अनवरत खानाबदोशी करती और गांवों-कस्बों से दूर जंगलों-पहाड़ों में रहती थीं। ब्रिटिश शासकों के लिए इन जनजातियों का इस प्रकार का घुमक्कड़ी जीवन सभ्यतागत मानकों से विचलन था और उन्होंने इसी प्रकार के पूर्वाग्रह रखते हुए इन्हें जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया।

भारतीय वर्णाश्रम और जाति व्यवस्था का नया-नया साक्षात्कार कर रहे अंग्रेजों के लिए यह स्वाभाविक भी था कि जिस प्रकार भारत में हर पेशे को एक जाति विशेष से जोड़ दिया गया था, उसी प्रकार अपराध को भी कुछ तथाकथित असभ्य समुदायों के साथ नत्थी कर दिया जाता। जनजातियों की विद्रोही प्रवृत्तियों से अंग्रेज आजिज भी आ चुके थे। स्वायत्त आदिवासी संस्कृति और स्वायत्त शासन व्यवस्था में निष्ठा रखने वाली इनमें से कई जनजातियां विदेशी साम्राज्यवाद के खिलाफ समय-समय पर हिंसक प्रतिरोध करती आई थीं। भूमिहीन घुमक्कड़ जनजातियों के पैरों में आपराधिक जनजाति अधिनियम की बेड़ियां डाल कर ब्रिटिश सरकार ने एक तरफ इन जनजातियों की आजादी पर पुलिस थाने का कानूनी नियंत्रण स्थापित कर दिया और दूसरी तरफ इन जनजातियों पर अपराधी होने का ठप्पा लगा कर उसने आम भारतीय विशेषत: सवर्ण आभिजात्य समाज में इनके प्रति पूर्वाग्रह के बीज बो दिए। इन्हीं पूूर्वाग्रहों के चलते विदेशी साम्राज्यवाद से लड़ने वाली इन जनजातियों को भारतीय इतिहास में आज तक स्वाधीनता सेनानियों का दर्जा हम नहीं दे पाए हैं।


यह निश्चय ही बेहद अन्यायपूर्ण था कि पूरे के पूरे समुदाय को जन्म के आधार पर अपराधी ठहरा दिया जाए, जबकि अपराधी घोषित की गई जनजातियों में कुछ ही के सदस्य अपराध आदि में लिप्त पाए गए थे। आजादी के बाद ही, 1952 में, इन जनजातियों को अपराधी होने के ठप्पे से मुक्तिमिल सकी, जब भारत सरकार ने इन जनजातियों को अनाधिसूचित करते हुए इस कानून को एक नया नाम दे दिया- आदतन अपराधी अधिनियम (हैबिचुएल आॅफेंडर्स एक्ट)।


हालांकि पुराने कानून का नाम बदल गया, नए कानून का संदर्भ और लक्ष्य भी पुराने कानून से अलग था, पर यह नया कानून भी कुल मिलाकर पुराने कानून से कोई खास जुदा नहीं है। कल की ‘अपराधी' जनजातियां अनाधिसूचित आपराधिक जनजातियों के रूप में अपने साथ लगे उसी पुराने सामाजिक लांछन के साथ जीने को मजबूर हैं। इन जनजातियों की क्षमताओं और प्रकृति के अनुकूल इनके लिए सम्मानजनक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में सरकारें पूर्णत: असफल साबित हुई हैं।


इतिहासकारों और विद्वानों ने औपनिवेशिक सरकार द्वारा आपराधिक जनजाति अधिनियम लागू किए जाने के पीछे की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों पर विचार करते हुए आपराधिक घोषित की गई जनजातियों की स्वातंत्र्य चेतना और देशी-विदेशी साम्राज्यवाद के खिलाफ उनके अंतहीन विद्रोहों की शृंखला को रेखांकित किया है। जल, जंगल, जमीन के अपने नैसर्गिक अधिकारों और अपनी आजादी के लिए संघर्ष करने के साथ-साथ ये जनजातियां स्वतंत्रता सेनानियों के लिए अपेक्षित खुफिया सूचना पहुंचाने और रसद आदि की आपूर्ति का काम भी करती थीं। इन जनजातियों को अपराधी घोषित करके ब्रिटिश सरकार ने स्वाधीनता की खातिर होने वाले इनके विद्रोहों की वैधानिकता खत्म कर दी और मुख्यधारा के समाज को इनसे दूर कर दिया। संबंधित कानून के कारण जनजातियों की छोटी रियासतों की वैधता भी जाती रही। साथ ही ब्रिटिश सरकार को कानून-व्यवस्था की अपनी नाकामियों को इन जनजातियों के सिर मढ़ने का मौका भी मिल गया।


स्थानीय कानून-व्यवस्था देखने वाली एजेंसियों और अन्य लोगों में इन जनजातियों के प्रति विद्यमान पूर्वाग्रहों ने तो इनसे आगे बढ़ने के तमाम अवसर छीने ही हैं, यातायात के साधनों के विकास और उत्पादों के यंत्रीकरण के कारण इन जनजातियों के परंपरागत पेशों पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। गधों-खच्चरों पर और बैलगाड़ियों में रोजमर्रा की जरूरत का सामान लादे एक गांव से दूसरे गांव घूम-घूम कर व्यापार करने वाली बंजारा जैसी अनाधिसूचित जनजातियों की अब कोई पूछ ही नहीं रह गई है। इनके हस्तनिर्मित
उत्पाद यंत्रों से निर्मित सस्ते और सुघड़ उत्पादों के सामने ग्राहकों को आकर्षित नहीं कर पाते। मनबहलाव के आधुनिक साधनों के आ जाने से लोक कथाकारों और लोक गीतकारों के लिए अब किसी के पास समय ही नहीं है।


भूमि अधिकारों से बलात वंचित किए गए ये जनजातीय समाज वंचना और उपेक्षा से भरा नारकीय जीवन जीने को अभिशप्त हैं। बस स्टेशनों और रेलवे स्टेशनों से लेकर मंदिरों व चौराहों पर अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए इन जनजातियों के लोग भीख तक मांगते देखे जा सकते हैं। गली-गली भटक कर फेरी लगाने से लेकर गांवों और कस्बों में कलाबाजी का तमाशा दिखाते हुए भी ये पाए जाते हैं। इनकी लड़कियां और स्त्रियां आज परिवार की भूख मिटाने के लिए अपनी देह तक बेचने को मजबूर हैं। उजाड़ और जीर्ण-शीर्ण खाली पड़े भवनों, चौराहों और गंदी बस्तियों में चल-अचल रूप से रहने वाले इन लोगों के पास प्राय: कुछ भी चल-अचल संपत्ति नहीं होती। बीमारू परिवेश और कुपोषण के कारण इन जनजातियों के लोगों को आप घातक बीमारियों से ग्रसित देख सकते हैं, पर अर्थाभाव और जागरूकता के अभाव के साथ-साथ मुख्यधारा के समाज में अपने प्रति विद्यमान नकारात्मक मानसिकता के चलते ये चाह कर भी सरकारी या निजी चिकित्सालयों में अपना इलाज नहीं करवा पाते। बना लिया हो हमने चाहे शिक्षा अधिकार कानून, पर कोई सरकारी कानून आज तक इनके बच्चों को शिक्षा नहीं दिला पाया है। आसपास होने वाले हर अपराध के लिए पुलिस द्वारा इन्हें पूछताछ के नाम पर तंग करना आम है। मात्र शक की बिनाह पर इन पर पुलिस एफआइआर दर्ज कर देती है। इन बेहद गरीब और अशिक्षित लोगों के लिए अपने आप को निर्दोष साबित करना बहुत मुश्किल होता है। पुलिस थानों में मिलने वाली यंत्रणाएं और अपमान इनके जीवन का हिस्सा बन चुके हैं।


वर्ष 2006 में आए भाषा ट्रस्ट के एक आकलन के मुताबिक इन जनजातियों की आबादी हमारे देश में लगभग 13.5 करोड़ है और यह आबादी 801 अनाधिसूचित जनजातियों को अपने में समाए हुए है। इनमें से बाईस जनजातियां तो अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल की गई हैं और सत्ताईस को अनुसूचित जनजातियों में परिगणित किया गया है जबकि 421 जनजातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित किया गया है। लेकिन स्पष्ट है कि एक बड़ी आबादी शेष बची उन 227 जनजातियों की है जिन्हें उपर्युक्त में से किसी भी सूची में नहीं डाला गया है। इसका मतलब है कि आरक्षण जैसे प्रावधानों का लाभार्थी बनने से इन्हें वंचित रखा गया है। इन्हें वोट के रूप में देखने वाले राजनीतिक दल इन्हें मतदाता पहचान पत्र तो दिलवा देते हैं लेकिन शिक्षा और रोजगार में काम आने वाले जाति प्रमाणपत्र और मनरेगा के रोजगार कार्डों तक इनकी पहुंच अभी तक सुनिश्चित नहीं की जा सकी है। जाति प्रमाणपत्रों के अभाव में इनके बच्चों को न वजीफे मिल पाते हैं न शिक्षा संस्थानों में आरक्षण। अपेक्षित प्रमाणपत्रों के अभाव में विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं से भी इन्हें वंचित ही रहना पड़ा है।


http://www.jansatta.com/politics/politics-opinion-on-denotified-tribes/445148/


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close