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आपदा राहत की उलझी कड़ियां-- शैलेन्द्र चौहान

भारत में लोगों को आपदा से बचाना या तत्काल राहत पहुंचाना किसकी जिम्मेदारी है? पिछले पांच दशक से सरकार भी इस यक्ष प्रश्न से जूझ रही है। दरअसल, आपदा प्रबंधन तंत्र की सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोगों को कुदरती कहर से बचाने की जिम्मेदारी कई महकमों पर है। जब लोग बाढ़ में डूब रहे होते हैं, भूकंप के मलबे में दब कर छटपटाते हैं या फिर ताकतवर तूफान...

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चेन्नई बाढ़ : एक मानव निर्मित त्रासदी

चेन्नई की बाढ़ जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों का एक भयावह उदाहरण तो है ही, इससे हुई तबाही ने मानव समाज की खतरनाक गलतियों के नतीजों को भी रेखांकित किया है.  हाल के वर्षों में उत्तराखंड, कश्मीर समेत देश के विभिन्न इलाकों में बाढ़ की त्रासदी का कहर लगातार बढ़ा है. तेज शहरीकरण और विकास की आपाधापी में सरकार और समाज प्राकृतिक तंत्रों को बेतहाशा बरबाद कर रहे हैं. नदियां...

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जलवायु परिवर्तन का नतीजा हैं ये त्रासदियां-- अभय कुमार

राजधानी चेन्नै और तमिलनाडु के अन्य हिस्सों में भारी बारिश का सिलसिला जारी है. इस महानगर के हालिया इतिहास में वर्षा का यह स्तर अभूतपूर्व है. आम तौर पर तमिलनाडु में वर्ष के इन महीनों में तेज बारिश होती है. इसका कारण उत्तर-पूर्वी मॉनसून है जिसे वापस लौटता हुआ दक्षिण-पश्चिम मॉनसून भी कहा जाता है. हिमालय से आती ठंडी हवाएं बंगाल की खाड़ी से नमी पाती हैं और दिसंबर से...

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कम भयावह हो सकती थी उत्तराखंड की आपदा-- सीएजी की रिपोर्ट

भारी बारिश और बाढ़ की मार झेलते आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में हुई जनहानि की खबरों के बीच सीएजी की एक रिपोर्ट 2013 की प्राकृतिक आपदा के बारे में आयी है. रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तराखंड में विकास-कार्यों में वन और पर्यावरण मंत्रालय, ग्लेशियर केंद्रित विशेषज्ञ समिति सहित कई अन्य एजेंसियों द्वारा जारी दिशा-निर्देशों की अनदेखी की गई.   रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड में निर्माण-कार्यों के दौरान निकले अपशिष्ट के निपटान के बारे में...

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हिमालयी विकास का मॉडल- सुरेश भाई

हिमालय बचाओ! देश बचाओ! सिर्फ नारा नहीं है, बल्कि यह हिमालय क्षेत्र में भावी विकास नीतियों को दिशाहीन होने से बचाने का भी रास्ता है। चिपको आंदोलन के दौरान पहाड़ की महिलाओं ने नारा दिया कि मिट्टी, पानी और बयार! जिंदा रहने के आधार! और ऊंचाई पर पेड़ रहेंगे! नदी ग्लेशियर टिके रहेंगे! ये तमाम नारे पहाड़ के लोगों ने दिए हैं। हिमालयी क्षेत्रों के लोगों, सामाजिक अभियानों तथा आक्रामक...

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