बिगाड़ना बड़ा आसान है, बनाना बहुत मुश्किल. इसी तरह रोजगार मिटाना बहुत आसान है, जबकि रोजगार बनाना बहुत मुश्किल. अगर ऐसा न होता, तो हर साल दो करोड़ नये रोजगार पैदा करने का वादा करनेवाली मोदी सरकार अपने आधे कार्यकाल तक कम-से-कम पांच करोड़ रोजगार तो पैदा ही कर चुकी होती. लेकिन, सरकार का श्रम ब्यूरो बताता है कि देश में रोजगार देनेवाले आठ प्रमुख उद्योग क्षेत्रों में अप्रैल से...
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बजट में हुई अनदेखी का अर्थ-- डा. भरत झुनझुनवाला
वित्त मंत्री ने बजट में सरकार के पूंजी खर्चों को बढ़ाने की बात कही है. ग्रामीण सड़क एवं विद्युतीकरण जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं में निवेश बढ़ाया गया है. यह कदम सही दिशा में है. इस दिशा में पहली चुनौती कार्यान्वयन की है. एनडीए सरकार के अब तक के प्रथम तीन वर्षों में सरकार के पूंजी खर्चों में गिरावट आयी है. यह क्षम्य है, चूंकि बीत वर्षों में सरकार पर सातवें वेतन आयोग...
More »इंफ्रा-मुखी लुभावना बजट-- प्रमोद जोशी
भारत का बजट लोक-लुभावन राजनीति, राजकोषीय अनुशासन और अर्थशास्त्रीय नियमों की रोचक चटनी होता है. इसकी बारीकियां केवल वित्त मंत्री का भाषण सुननेभर से समझ में नहीं आतीं. अलबत्ता पहली नजर में सार्वजनिक प्रतिक्रिया समझ में आ जाती है. इस लिहाज से इस बार का बजट काफी बड़े वर्ग को खुश करेगा. इसमें सामाजिक क्षेत्र का ख्याल है, ग्रामीण क्षेत्र की फिक्र है, साथ ही छोटे करदाता की परेशानियों को...
More »विकास को बरकरार रखनेवाला बजट-- आलोक पुराणिक
आम बजट को 'कामचलाऊ', 'लोकलुभावन' और 'ऐतिहासिक' जैसी संज्ञाएं दी जा रही हैं. लेकिन, इसे न तो पूरी तरह से लोगों के अलग-अलग तबकों को तुष्ट करने के इरादे से लाया गया है, और न ही इसमें आर्थिक सुधारों को गति देने की कोई ठोस पहल की गयी है. सरकार ने गांव और गरीब पर फोकस तो किया है, पर और बेहतर की गुंजाइश बनी हुई है. बजट के विभिन्न...
More »बजट में यूनिवर्सल बेसिक इनकम पेश कर गरीबों को साध सकती है मोदी सरकार
नयी दिल्ली : चुनावी मौसम में पेश होने वाली बजट के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार यूनिवर्सल बेसिक इनकम का तोहफा देकर देश के गरीबों को साधने का प्रयास कर सकती है. हालांकि, इसके पहले भी मोदी सरकार गरीबों को साधने कई लोकलुभावनी योजनाएं पेश कर चुकी है, लेकिन अन्य योजनाओं की तरह गरीबों के कल्याण के लिए सरकार की ओर से पेश की गयी योजनाएं भी समय के साथ...
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