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उत्तराखंड: जलवायु आपदाओं की कीमत चुका रहे बच्चे, घर और स्कूल लौटने का इंतजार

इंडियास्पेंड, 01 नवम्बर पिछले डेढ़ महीने से राहत शिविर में रही 10 साल की अंशिका चंदेल नाराज हैं कि उनके पास पढ़ने-लिखने के लिए न तो पूरी कॉपी-किताबें हैं, एक मेज-कुर्सी, कक्षा फुलटाइम शिक्षक भी नहीं हैं। खेलने पर डांट पड़ती है। तेज बोलने पर डांट पड़ती है। बोलकर पढ़ने पर डांट पड़ती है। “मैं पहले पांचवीं क्लास में पढ़ती थी। अब ढंग से नहीं पढ़ पाती हूं। मेरे कपड़े, नोटबुक, किताबें,...

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कपास का शाप: गुलाबी सुंडी को नियंत्रित करने में मददगार साबित हो सकती है यह तकनीक

डाउन टू अर्थ, 01 नवम्बर  देश के कपास उत्पादक राज्यों में किसान गुलाबी सुंडी से निपटने के लिए जूझ रहे हैं, जो फसलों पर कहर बनकर टूटा है। गुलाबी सुंडी को पिंक बॉलवर्म (पीबीडब्ल्यू) के नाम से भी जाना जाता है। हाल के वर्षों में देखें तो इस कीट ने किसानों को भारी नुकसान पहुंचाया है। यहां तक की आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट-प्रतिरोधी कपास की किस्म, बीटी कॉटन (बोलगार्ड II...

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पश्चिम बंगाल के कोयला खदान के पास रहने वालों का अभी तक पुनर्वास नहीं

मोंगाबे हिंदी, 27 अक्टूबर जैसे ही आप पश्चिम बंगाल के इस गांव की चौड़ी और टूटी-फूटी हुई सड़क पर चलते हैं, यह साफ हो जाता है कि यहां कुछ विनाशकारी हुआ है। चारों ओर टूटे-फूटे मकान हैं। इन्हीं में से एक घर तपन पाल का है। उनके घर की दो मंजिला इमारत का एक हिस्सा जुलाई 2020 की रात में भरभराकर गिर गया था। इसकी ईंटें यहां-वहां बिखरी पड़ी हैं। आगे चलने...

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कपास पर शाप: कैसे बीटी कपास के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गई गुलाबी सुंडी

डाउन टू अर्थ, 27 अक्टूबर  गुलाबी सुंडी यानी पिंक बॉलवर्म के हमलों के चलते 2000 के दशक से भारतीय किसानों को अपनी कपास की फसल से लगातार नुकसान झेलना पड़ रहा है। वैज्ञानिकों को पता चला है कि इस कीट ने आनुवंशिक रूप से संशोधित बीटी कपास के प्रति भी प्रतिरोध विकसित कर लिया है। इससे पहले आप पढ़ चुके हैं कि गुलाबी सुंडी के कारण आत्महत्या के कगार पर पहुंचे किसान,...

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गुजरात की स्थानीय पाटनवाड़ी ऊन और भेड़ों की मांग में गिरावट

मोंगाबे हिंदी, 26 अक्टूबर जब हम गुजरात की देशी नस्ल की भेड़ पाटनवाड़ी की तलाश में निकले, तो हमें कच्छ का वह एक दिन काफी लंबा लगा था। काफी तलाश के बाद हमें कुछ ही भेड़े मिल पाई। घटती मांग के चलते आज राज्य में इस नस्ल की 5,000 से भी कम भेड़ें बची हैं। भुज से नखत्राणा की ओर लगभग 80 किलोमीटर के सफर के बाद हमें एक मालधारी नौबा जडेजा...

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