पीयूष बाजपेयी, जबलपुर। खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए तरह-तरह के नए सीड तैयारे करने वाले कृषि वैज्ञानिकों ने अब तरल खाद तैयार की है। वैज्ञानिकों का दावा है कि 35 साल की रिसर्च के बाद तैयार इस तरल खाद को एक एकड़ क्षेत्र में 1 लीटर डालने पर लगभग 20 फीसदी तक उत्पादन बढ़ जाएगा। यह सभी प्रकार की खेती में उपयोग की जा सकेगी। यह रिसर्च जवाहरलाल...
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कैसे करें सूखे का सामना-- बाबा मायाराम
पिछले साल किसान सूखे की मार झेल चुके हैं। इस साल फिर सूखा पड़ गया। जबकि कुछ वर्षों से किसान निरंतर संकट में हैं। उनकी हालत पहले से ही खराब है। इस वर्ष सूखे ने उन्हें गहरे संकट में डाल दिया है। भारतीय मौसम विभाग की भविष्यवाणी सही निकली है। खुद कृषि मंत्रालय ने स्वीकार कर लिया है कि सामान्य से पंद्रह-सोलह फीसद कम बारिश हुई। इससे खरीफ की फसल...
More »पर्यावरण के नजरिए से आहार- रमेश कुमार दुबे
अगर गोमांस (बीफ) के बढ़ते इस्तेमाल को पर्यावरण की दृष्टि से देखा जाए तो इतना विवाद न हो। गहराई से देखा जाए तो आज जलवायु परितर्वन, वैश्विक तापवृद्धि, भुखमरी, नई-नई बीमारियां प्रत्यक्ष रूप से मांसाहार के बढ़ते चलन से जुड़ी हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनइपी) के मुताबिक एक मांस-बर्गर तैयार करने में तीन किलोग्राम कार्बन उत्सर्जित होता है। ऐसे में धरती की रक्षा के लिए मांस की बढ़ती...
More »बस्तर के कोदो, रागी और लाल चावल को मिलेगी पहचान
जगदलपुर (ब्यूरो)। अब तक मोटा अनाज के रूप में उपेक्षित रहे बस्तर के कोदो, रागी और लाल चावल को जल्द ही अपनी पहचान मिलने वाली है। कृषि प्रौद्यौगिकी प्रबंधन अभिकरण (आत्मा) इन तीनों उत्पाद को पहचान दिलाने पेटेन्ट कराने की पहल कर रही है। ग्राम बड़े परोदा के ग्रामीणों व्दारा उत्पादित फसलों को फिलहाल पैकेजिंग कर विक्रय किया जा रहा है। लोहण्डीगुड़ा विकासखंड के ग्राम बड़े परोदा के किसानों को कृषि...
More »किसानों की खुदकुशी के सबब- विनोद कुमार
जरा गौर कीजिए कि इसी देश में करीब अठारह-बीस करोड़ भूमिहीन दलित, अति पिछड़े मजूर हैं। उनके जीवन में यह मौका ही नहीं आता कि वे बैंक से कर्ज लें, खेती करें, उनकी फसल नष्ट हो और वे आत्महत्या कर लें। इसका अर्थ यह नहीं कि हम किसानों की आत्महत्या से पीड़ा का अनुभव नहीं करते। लेकिन इस बात को समझना तो होगा कि एक भूमिहीन किसान या मजूर आत्महत्या न...
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