मित्रो, बच्चों के अधिकार, स्वास्थ्य और भविष्य को लेकर परिवार, समाज और सरकार सभी चिंता करते हैं. ये इन सभी के भविष्य की बुनियाद हैं. इन्हें जितना मजबूत बनाया जायेगा, सब का भविष्य उतना ही उज्ज्वल होगा. इस तथ्य के बाद भी आंकड़े बताते हैं कि हम बच्चों की जान बचाने में अब भी पीछे हैं. जो बच्चे पैदा हो रहे हैं, उनमें कुपोषित बच्चों की संख्या भी अधिक होती है. बच्चों...
More »SEARCH RESULT
हिन्दी के विस्थापन का दौर- प्रभु जोशी
जनसत्ता 31 जुलाई, 2014 : अगर आप हिंदी को गरियाने के लिए आगे आने का नेक इरादा रखते हैं तो फिर निश्चिंत हो जाइए कि अब आप अकेले नहीं हैं, बल्कि वित्तीय पूंजी के इस सर्वग्रासी दौर में, नई-नई विचार प्रविधियों से, उपनिवेशीकृत बनाए जा रहे, भारतीय मध्यवर्ग के बुद्धिजीवियों की एक पूरी रेवड़ आपके पीछे दौड़ी चली आने वाली है। इस अनुगामिनी भीड़ को अगर आप थोड़े अतिरिक्त उन्माद...
More »ज्यां द्रेज़: सामाजिक नीति का कथा पुराण
आज शायद ही किसी को वह चिट्ठी याद होगी जिसे सात अगस्त 2013 को नरेन्द्र मोदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखा था. इस चिट्ठी में मोदी ने दुख जताया था कि "खाद्य सुरक्षा का अध्यादेश एक आदमी को दो जून की रोटी भी नहीं देता." खाद्य-सुरक्षा के मामले पर लोकसभा में 27 अगस्त 2013 को बहस हुई तो उसमें भी ऐसे ही मनोभावों का इज़हार हुआ. तब भारतीय जनता पार्टी के...
More »नि:शक्तों को समान अवसर का है अधिकार- आर के नीरद
नि:शक्तों को वह सब अधिकार मिला हुआ है, जो एक सामान्य व्यक्ति को है. नि:शक्तता के आधार पर उसके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता, बल्कि एक सामान्य व्यक्ति के मुकाबले उसकी शारीरिक या मानसिक कमी की भरपाई के लिए उसके साथ विशेष व्यवहार किया जाना है. शारीरिक रूप से नि:शक्त व्यक्ति के मामले में समाज का नजरिया बदला भी है, लेकिन मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति के प्रति अब...
More »गांवों के विकास पर अरबों का सालाना खर्च- आर के नीरद
मित्रों, केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार, ग्रामीण विकास पर सब का जोर है. गांवों के विकास से ही देश का विकास संभव है, यह सभी जानते हैं. देश की 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है, यह सच भी सब को पता है. जाहिर है कि विकास के सवाल पर जब भी बात होगी, गांव उसका सबसे बड़ा विषय होगा. आजादी से अब तक गांवों के विकास के लिए सरकार ने अनेक...
More »