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न्यूज क्लिपिंग्स् | बच्चों के हित में एकीकृत बाल संरक्षण योजना- आर के नीरद

बच्चों के हित में एकीकृत बाल संरक्षण योजना- आर के नीरद

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published Published on Aug 26, 2014   modified Modified on Aug 26, 2014
मित्रो,

बच्चों के अधिकार, स्वास्थ्य और भविष्य को लेकर परिवार, समाज और सरकार सभी चिंता करते हैं. ये इन सभी के भविष्य की बुनियाद हैं. इन्हें जितना मजबूत बनाया जायेगा, सब का भविष्य उतना ही उज्ज्वल होगा. इस तथ्य के बाद भी आंकड़े बताते हैं कि हम बच्चों की जान बचाने में अब भी पीछे हैं. जो बच्चे पैदा हो रहे हैं, उनमें कुपोषित बच्चों की संख्या भी अधिक होती है.

बच्चों की मौत के मामले में दिल दहला देने वाला सच यह है कि हर साल 13-14 लाख बच्चे पांच साल भी जिंदा नहीं रहते. हर माह एक हजार में 64 ऐसे बच्चे हैं, जो पांच साल की उम्र पूरी करने के पहले दुनिया को अलविदा कह रहे हैं. इनमें 50 प्रतिशत बच्चे तो जन्म के एक साल के अंदर मर जा रहे हैं. इन्हें बचाना संभव है. इस संभव को साकार करने के लिए सरकार की योजनाएं हैं. मेडिकल साइंस के पास उपाय हैं. हम-आप भी उन्हें इस तरह मरने देना नहीं चाहते. उन्हें बचाना चाहते हैं.

अब तक के अध्ययन और अनुभव का सार यही आया है कि कुपोषण और कमजोरी बच्चों की मौत कर सबसे बड़ा कारण है. अगर इस पर हमने नियंत्रण कर लिया, तो बच्चों को मौत के मुंह से निकाल लेना बिल्कुल ही संभव है. अभी केंद्र और राज्य सरकार का सबसे ज्यादा फोकस इसी बात है कि डायरिया और कुपोषण को कैसे पूरी तरह नियंत्रित किया जाये. दूसरी बात. जो बच जाते हैं, उनमें से बहुत बड़ी संख्या ऐसे बच्चों की है, जो सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक और मानसिक रूप से शोषण, उपेक्षा और अत्याचार के शिकार होते हैं. इसके कई कारण हो सकते हैं. हैं भी. उन कारणों के आधार पर सरकार ने कई ऐसी व्यवस्था की है, जिससे उन्हें सामान्य बच्चों की तरह जीने, बढ़ने, पढ़ने और अपने भविष्य की बुनियाद गढ़ने का अवसर मिल सके. ऐसी योजनाओं और कार्यक्रमों को एक साथ लागू करने और उन्हें प्रभावी बनाने के लिए एकीकृत बाल संरक्षण योजना लायी गयी है. हम इस अंक में इन्हीं विषयों की चर्चा कर रहे हैं.

आरके नीरद
देश में बच्चों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों ने कई पहल की है, जिनमें एकीकृत बाल संरक्षण योजना (आइसीपीएस) भी शामिल है. इसे 2009-10 में शुरू किया गया. यह भारत में बच्चों के लिए सुरिक्षत वातावरण निर्माण करने के मकसद से शुरू की गयी योजना है. इसके तहत कुछ ऐसे विशिष्ट उपाय किये गये हैं, जिनसे बच्चों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और शैक्षणिक विकास के लिए उचित वातावरण का निर्माण हो सके. इसमें बाल न्याय के कार्यक्रमों को भी शामिल किया गया है, ताकि उनके विधिक अधिकारों और हितों की रक्षा हो सके. दरअसल में देश में बच्चों की कई तरह की समस्याएं हैं. सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर परिवार और वर्ग के बच्चों की समस्याएं ज्यादा जटिल है. उनका शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण के इतने तरीके परंपरागत रूप से इस्तेमाल में आते रहे हैं कि समाज उनका अभ्यस्त हो गया है. उसे इस बात का एहसास तक नहीं होता है कि उसके किस किस तरह के व्यवहार से बच्चों के कानूनी और मानवीय अधिकारों का हनन हो रहा है. दूसरी बात कि आर्थिक कारणों से बच्चों को मजदूरी के काम में इस्तेमाल करना भी पीढ़ियों से चला आ रहा है. इसे रोकना देश के अच्छे भविष्य के लिए इसे रोकना जरूरी है. तीसरी बात कि ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्हें कोई संरक्षण हासिल नहीं है. बहुत सारे बच्चे सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ दिये जाते हैं या वे खुद भटक जाते हैं. ऐसे बच्चों को उचित संरक्षण चाहिए. लावारिस बच्चों की परवरिश के लिए उन्हें गोद लेने की व्यवस्था को आसान बनाना भी जरूरी समझा गया. इन सबके के लिए समय-समय पर कानून भी बनते रहे हैं. एकीकृत बाल संरक्षण योजना में इन सभी कार्यक्रमों, उपायों, कानूनों और योजनाओं को एक साथ जोड़ा गया है, ताकि इनका उद्देश्य पूरा हो सके. इस योजना के दायरे में गांव-पंचायत के भी बच्चे आते हैं और समाज का कोई व्यक्ति अपनी पहल से उन्हें इस योजना का लाभ दिला सकता है.

बाल न्याय के लिए कार्यक्र म
इस योजना में फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों के लिए एकीकृत कार्यक्र म शामिल किया गया है, ताकि उन्हें सही संरक्षण और दिशा मिल सके. इसमें बच्चों के लिए बनाये गये सभी नियमों और कार्यक्रमों को एक साथ लागू करने की व्यवस्था की गयी है तथा यह प्रावधान किया गया है कि शिशु गृह में रहने वाले बच्चों को गोद लेने वालों को इसके जरिये मदद दी जा सके. गोद लेने को बढ़ावा देने के लिए नियमों को सहज रूप में लागू करने का प्रावधान किया गया है. इसमें शिशु गृहों को माध्यम बनाया गया है.

बाल र्दुव्‍यवहार पर अंकुश
इस योजना में बच्चों के साथ र्दुव्‍यवहार, उनकी उपेक्षा तथा उनके शोषण को रोकने के उपाय किये गये हैं. वैसे बच्चे, जिन्हें परिवार के लोगों ने त्याग दिया है या जो परिवार से बिछड़ गये हैं, उन्हें सुरक्षा देने के उपाय भी इसमें शामिल हैं. इसमें बच्चों की देखभाल से जुड़े कानूनी और प्रशासनिक ढांचे को सहज रूप में तैयार करने की व्यवस्था है. इसी परिणाम है कि किशोर न्याय बोर्ड जैसे न्यायिक संगठनों को अधिक संवेदनशील बनाया गया है तथा बच्चों से जुड़े न्यायिक मामलों के निबटाने की गति में तेजी आयी है. बाल सुधार गृह की व्यवस्था को पहले के मुकाबले ज्यादा मानवीय और संवेदनशील बनाने में भी इस योजना का बड़ी भूमिका है. बाल सुधार गृह में रहने वाले बच्चों को सामान्य बच्चों की तरह शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, आवास, मनोरंजन और व्यक्तित्व विकास का अवसर देने में यह योजना असरदार रही है. गुमशुदा बच्चों के मामले में भी इस योजना से ठोस पहल की है और इस पर वेबसाइट एवं बाल निगरानी प्रणाली का गठन किया गया है.

आईसीपीएस के अधीन जो सेवाएं सशक्त/प्रारम्भ की जा रही हैं और उन्हें सहायता दी जा रही है, वे हैं:

संस्थागत देखभाल
संस्थागत देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए, आश्रय गृहों के निर्माण, सुधार और रखरखाव के वास्ते वित्तीय सहायता मुहैया कराई जा रही है. बाल न्याय अधिनियम के तहत बाल गृह, पर्यवेक्षण गृह और विशेष गृह बनाए गए हैं और विशेष जरूरतों वाले बच्चों (अक्षम और एचआईवी/एड्स से संक्रिमत बच्चों) को विशेष सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं. इस योजना के तहत विभिन्न प्रकार के 1199 गृहों को पहले से ही सहायता दी जा रही है. 18 वर्ष का होने पर गृह छोड़ देने के बाद बच्चों की देखभाल के लिए भी आईसीपीएस के तहत सेवाएं मुहैया कराई जा रही हैं.

गैर-संस्थागत देखभाल
इस योजना के तहत कई गैर-संस्थागत तंत्र मुहैया कराए गए हैं, जिनमें बच्चे को गोद देने, पालन-पोषण, प्रायोजन तथा शहरी और अर्द्ध-शहरी इलाकों में देखभाल और पुनर्वास के लिए आश्रय स्थल खोलने जैसे समुदाय आधारित सुरिक्षत स्थान उपलब्ध कराना शामिल है. ये परिवार की देखभाल से वंचित या कम देखभाल वाले बच्चों की देखभाल और सुरक्षा में अहम भूमिका निभाएंगे. इस योजना के तहत बच्चे को गोद लेने का प्रबंध करने वाली 143 विशिष्ट एजेंसियां और 104 मुक्त आश्रयस्थल पहले ही काम कर रहे हैं.

आपातकालीन सहायता सेवाएं
‘चाल्डलाइन 1098‘ बच्चों के लिए समिर्पत टेलीफोन सहायता सेवा है. योजना के तहत यह सेवा नए स्थानों पर उपलब्ध कराई जा रही है और यह पूरे देश में चरणबद्ध ढंग से लागू की जाएगी. पिछले दो वर्षों में चाइल्डलाइन के दायरे में आने वाली जगहों की संख्या दुगनी हो गई है और अब यह सेवा देश भर में 164 शहरों/जिलों में उपलब्ध है.

बाल निगरानी प्रणाली
बाल निगरानी प्रणाली का गठन आईसीपीएस के तहत एक अन्य प्रमुख पहल है. यह बाल संरक्षण से सम्बद्ध आंकड़ों के स्पष्ट अंतर मिटाने के लिए गुमशुदा बच्चों की तलाश संबंधी वैबसाइट सहित सभी बाल संरक्षण सेवाओं तक पहुंच वाली एक वैब आधारित प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) है.

संवैधानिक एवं सेवा प्रदाता संरचनाएं
यह योजना न्याय और बाल संरक्षण अधिकार सुनिश्चित करने के लिए बाल न्याय अधिनियम के तहत गठित बाल कल्याण समितियों और बाल न्याय बोर्ड्स जैसी संवैधानिक सेवाओं/संरचनाओं को सशक्त भी बनाती है. इन संवैधानिक संस्थाओं की स्थापना में आईसीपीएस के तहत व्यापक प्रगति की गई है. अब तक देश भर में 548 बाल कल्याण समितियां (योजना शुरू होने से पहले 240) और 561 बाल न्याय बोर्ड्स (आईसीपीएस शुरू होने से पहले 211) की स्थापना की गई है.

नेटवर्क शुरू करने पर जोर
यह सुनिश्चित करने के लिए कि बाल संरक्षण पर उचित ध्यान दिया गया है और सेवाओं की गुणत्ता पर्याप्त रही है, यह योजना विशेष रूप से बाल संरक्षण पर सेवा प्रदाता नेटवर्क शुरू करने पर जोर देती है, जो पूरे देश में लागू की जाएगी. इसमें केंद्र के स्तर पर केंद्रीय परियोजना सहायता इकाई, राज्य और जिला स्तर पर बाल संरक्षण संस्थाएं तथा व्यवहारिक स्तर पर बच्चा गोद देने की सरकारी संसाधन एजेंसियां (स्टेट एडॉप्?शन रिसोर्स एजेंसियां) शामिल हैं.

मुश्किल हाल बच्चों को सहायता
आईसीपीएस उन बच्चों की मदद करती है जो मुश्किल हालात में हैं और उन पर ध्यान तथा सहायता दिए जाने की जरूरत है. देश में ऐसे बच्चों के लिए फिलहाल कोई अनुमान उपलब्ध नहीं है. जिला बाल संरक्षण इकाइयों और राज्य बाल संरक्षण संस्थाओं जैसी संरचनाओं के चालू होते ही इस योजना को लागू करने के लिए तस्वीर ज्यादा स्पष्ट होकर उभरेगी. वे असहाय बच्चों, उनकी असहायता के स्वरूप तथा उनके लिए जरूरी संरक्षण का आकलन करेंगी. बच्चों के लिए वर्तमान में उपलब्ध सेवाओं के बीच संबंध कायम करने तथा राज्य के कार्यक्र मों के दायरे में बच्चों की जरूरतों पर एकतरफा ध्यान देने की दिशा में भी काम करने के लिए इन संरचनाओं की जरूरत है.


http://www.prabhatkhabar.com/news/144357-story.html


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