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खरीद-बिक्री रोकने में असमर्थ हो चुका है सीएनटी एक्ट- जय कुमार दास

संताल परगना और छोटानागपुर प्रमंडल में सीएनटी/ टेनेन्सी एक्ट को खास कर इसलिए लागू किया गया था कि इन क्षेत्रों में रहनेवाले लोगों (आदिवासी-गैर आदिवासी) की जमीन को धनाढय़ लोग औने-पौने में ना ले लें? परंतु अंतिम सेटलमेंट सन 1924-25 (संताल परगना) से यह साफ जाहिर होता है कि इन क्षेत्रों में जमीन की खरीद-बिक्री हुई है और उसे कानूनी जामा भी पहनाया जा चुका है. सीएनटी-टेनेन्सी एक्ट का आज...

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प्रभावी कानून के होते क्यों नहीं रोक पाते बाल श्रम- मुनीश रायजादा

हाल ही में कैलाश सत्यार्थी को शांति का नोबेल पुरस्कार दिए जाने से भारतीय समाज में पसरी बाल श्रम की बुराई दुनिया भर में उजागर हुई है। बारह साल पहले जब मैं भारत से अमेरिका आया था, तो यहां बाल श्रमिकों की अनुपस्थिति ने मेरा ध्यान बरबस आकर्षित किया था। भारत में हम ढाबों, रेस्तरां, बाजारों व होटलों में अक्सर बच्चों को काम करते देखते हैं। ये दृश्य हम में से...

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नरेगा : प्रधानमंत्री के नाम गणमान्य नागरिकों की चिट्ठी

सेवा में,                                                                                                                            13 अक्तूबर 2014 श्री नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री, भारत ...

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मनरेगा - क्या जीविका के अधिकार को सीमित किया जा सकता है?

राजनीति का सामान्य विद्यार्थी जानता है कि अधिकार अपने स्वभाव में सार्विक होते हैं। लेकिन क्या वह यह अनुमान लगा सकता है कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई कोई सरकार अपने बहुमत के बूते किसी सार्विक अधिकार का दायरा चंद लोगों तक सीमित कर सकती है ? महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में फेरबदल की केंद्र सरकार की हालिया योजना जीविका के सार्विक अधिकार का दायरा सीमित करने की...

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नोबेल शांति पुरस्कार का पैगाम - सत्‍येंद्र रंजन

भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई के संयुक्त रूप से नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित होने पर बेशक दोनों देशों के वंचित समूहों के बच्चों और उनके अधिकारों पर नए सिरे से रोशनी पड़ेगी। सत्यार्थी के 'बचपन बचाओ आंदोलन" ने इस कड़वी हकीकत से देश को परिचित कराए रखा है कि बंधुआ मजदूरी को अपराध बनाने, बाल मजदूरी को गैरकानूनी ठहराने और प्राथमिक शिक्षा को मूल अधिकार...

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