जनसत्ता 14 फरवरी, 2013: मनमोहन सिंह सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि गरीबी एक आर्थिक और राजनीतिक समस्या के बजाय अब केवल वित्तीय समस्या रह गई है। केंद्र सरकार की प्राथमिक चिंता अब न बेरोजगारी है, न महंगाई। देश की इन दो सबसे बड़ी समस्याओं से मुंह चुराने का उसने एक आसान उपाय निकाल लिया है। देश के गरीब लोगों के हाथ में दमड़ी रख दो; इससे सरकार के कल्याणकारी...
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अभिशाप साबित हो रही हरित क्रांति योजना
संवादसूत्र, गोसाईगंज (सुल्तानपुर) : नि:शुल्क बोरिंग व उस पर मिलने वाला अनुदान किसानों के लिए अभिशाप साबित हो रहा है। कूरेभार विकास खंड में यह योजना कमीशनबाजी की भेंट चढ़ गई है। इसके तहत मिलने वाली पाइप घटिया किस्म की है। अधिकांश पाइपें बोरिंग के समय ही दगा दे रही हैं। यदि ठीकठाक से बोरिंग हो भी गई तो दो-चार महीने में उस पाइप से पानी निकलना बंद हो जा रहा...
More »बासमती महंगा होने से निर्यात में कमी आने का अनुमान- आर एस राणा
निर्यात योग्य बासमती महंगा होने से विदेश से ऑर्डर में कमी विदेशी बाजार अप्रैल-नवंबर के दौरान निर्यात सौदे 16 फीसदी बढ़कर 21.8 लाख टन पिछले साल की समान अवधि में 18.8 लाख टन निर्यात सौदे हुए अप्रैल से अगस्त के दौरान 15 लाख टन बासमती का शिपमेंट पिछले साल की इस अवधि में 12.20 लाख टन की शिपमेंट वित्त...
More »खुला बाजार और बंद दिमाग- कुमार प्रशांत
जनसत्ता 11 दिसंबर, 2012: लंबे समय से देश के किसी भी गहरे सवाल पर, कोई भी सार्थक बहस करने में असमर्थ लोकसभा-राज्यसभा के सदस्यों के बीच दो दिन की भाषणबाजी के बाद यह फैसला हो गया कि भारत का खुदरा बाजार विदेशी पूंजी और विदेशी माल के लिए खोल दिया जाएगा। अरविंद केजरीवाल पूछते हैं कि भाई, जो खुदरा बाजार में अपना माल लेकर बैठता है और जो खरामां-खरामां उससे खरीदारी करने...
More »किसानों की बर्बादी की योजना- देविंदर शर्मा
इससे अधिक नुकसानदेह और कुछ नहीं हो सकता। चीनी से नियंत्रण हटाने की योजना है। इससे गन्ना उगाने वाले किसान शुगर मिलों की दया पर निर्भर हो जाएंगे। रंगराजन कमेटी द्वारा गन्ने के स्टेट एडवाइस्ड प्राइस (एसएपी) को खत्म करने के सुझाव के बाद अब किसानों को फेयर एंड रेमुनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) पर निर्भर रहना होगा। एफआरपी का निर्धारण केंद्र सरकार करती है और यह राज्य सरकारों द्वारा तय किए जाने...
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