हमारा संविधान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के गांव को स्वावलंबी व उन्हें एक स्वायत्त शासन इकाई बनाने के सपने के अनुरूप है. हमारे गांव ऐसे हों, जो अपने फैसले खुद लें और अपनी जरूरत की अधिक से अधिक चीजों का उत्पादन खुद करें. संविधान में ग्राम पंचायत को एक स्वायत्त शासन इकाई के रूप में स्थापित करने के लिए विधानमंडल को सभी जरूरी उपाय करने का कहा गया है. भारत के...
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संविधान में गांव की परिभाषा भी नहीं- आर के नीरद
भारत के संविधान में गांव की कोई परिभाषा नहीं है. जब गांव ही नहीं है, तो ग्राम गणराज्य भी नहीं है. यह बड़ा विरोधाभास है. महात्मा गांधी गांव गणराज्य की बात करते थे. वे आजादी का असली अर्थ गांवों की समरसता, आत्मनिर्भरता और लोकतंत्र में जन भागीदारी को मानते थे. देश आजाद हुआ और गणतंत्र भारत के लिए अपना संविधान बना, लेकिन इसमें गांव की परिकल्पना शामिल नहीं हो सकी. सब ने...
More »चुनावी माहौल में हाशिये पर अर्थनीति- अश्विनी महाजन
राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी से भारी शिकस्त के बाद घबराई कांग्रेस ने अपने मुख्यमंत्रियों का एक सम्मेलन बुलाकर महंगाई रोकने की जो बात कही है, वह हास्यास्पद ही है। तथ्य यह है कि पिछले तीन-चार वर्षों से महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है। वर्ष 2010 की तुलना में कीमतें अब तक 40 प्रतिशत बढ़ चुकी हैं। खाने-पीने की चीजों के दाम 48 प्रतिशत बढ़ चुके हैं। एक गरीब परिवार 2010...
More »लोकपाल विधेयक को राष्ट्रपति ने दी मंजूरी
नयी दिल्ली: बहुप्रतीक्षित लोकपाल विधेयक को आज राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गयी.विधेयक को राज्यसभा ने 17 दिसंबर को पारित किया था और 18 दिसंबर को यह लोकसभा में पारित हो गया था. सरकारी सूत्रों ने बताया कि लोकसभा सचिवालय ने कल विधेयक की प्रति कानून मंत्रालय को भेजी थी. इसके बाद विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए राष्ट्रपति भवन भेजा गया. सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रपति ने लोकपाल विधेयक पर दस्तखत...
More »विषमता का विकास और राजनीति- सुरेश पंडित
जनसत्ता 26 दिसंबर, 2013 : जैसे-जैसे सोलहवीं लोकसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ रही है। कांग्रेस और भाजपा अपने अधिकतम भौतिक और मानवीय संसाधन झोंक कर इस चुनाव को किसी भी तरह जीत लेने के लिए कटिबद्ध दिखाई दे रही हैं। मतदाताओं को रिझाने के लिए उनके पास विकास के अलावा और कोई खास मुद्दा नहीं है और चूंकि इसे पहले भी कई बार आजमाया...
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