रोजगार के लिए अर्जी देने वाले लोगों को साल में प्रति दिन 100 रुपये की मजदूरी के हसाब से अधिकतम 100 दिन के काम की गारंटी देने वाले कार्यक्रम मनरेगा का योजना आयोग के सदस्य मिहिर शाह की आध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिशों के आधार पर कायाकल्प होने जा रहा है। उन सिफारिशें का जिक्र नरेगा-2.0 कहलाने वाले महात्मा गांधी नेशनल रुरल एम्पलॉयमेंट गारंटी एक्ट 2005- ऑपरेशनल गाईडलाइन्स नामक...
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असम के चाय-बागान में भुखमरी से मौत
इतिहासकार बताते हैं कि अंग्रेजीराज के समय देश के पूर्वोत्तर के चाय-बागानों में काम करने वाले मजदूर बड़ी दीन-दशा में थे, तकरीबन बंधुआ मजदूर की दशा में। आजादी के बाद, इनकी दशा कुछ सुधरी। गुजरे कुछ दशकों में देश के चाय-उद्योग ने उन सालों में भी मुनाफा कमाया जिन सालों को आर्थिक-प्रगति के लिहाज से बेहतर नहीं माना जाता। ठीक इसी कारण, असम के चाय-बागानों से आने वाली भुखमरी की...
More »कौन ठगवा नगरिया लूटल हो : गोपालकृष्ण गांधी
‘लूट’ शब्द जो है, ठेठ हिंदी का है। उर्दू में भी उसकी अपनी जगह है। यानी उसका घर हिंदुस्तानी में है, बोलचाल की मिली-जुली जुबान में। और अफसोस, अब उसका घर हमारी हर जुबान में है, हर दिमाग में, हमारी निराशा में, हमारे गुस्से में, हमारे आक्रोश में। आजकल हम लूट, लुट जाने और लुटेरों के बारे में इतना पढ़ते, देखते और सुनते हैं कि लगता है ‘लूट’ शब्द हमारे लिए और हमारे...
More »नमस्कार-चमत्कार और प्रणाम...- गोपालकृष्ण गांधी
बात खादी-परंपरा से जुड़ी राजनीति की ही नहीं। हर दल की विश्वसनीयता ने क्षति देखी है। डॉ. लोहिया को कौन समाजवादी आज याद नहीं करता? अटलजी की आवाज सुनने आज कौन भाजपा समर्थक आतुर नहीं? एमना पागे लाग, गोपू (इनको प्रणाम कर, गोपू।) घर में जब कोई बुजुर्ग तशरीफ लाते तो पिताजी मुझे गुजराती में यह हिदायत देते। हिदायत क्या, आदेश ही समझिए। वह आदेश बहुत सुहावना होता था, क्यूंकि...
More »तुम केवल एक छवि हो?- गोपालकृष्ण गांधी
‘तुमि की केबोलि छोबि?’ (तुम क्या केवल एक छवि हो?) कविगुरु रबींद्रनाथ टैगोर अपनी एक रचना में अपने सामने रखी एक छवि से पूछते हैं। उस प्रश्न का संदर्भ अपने में कुछ है। प्रश्न का उत्तर भी, जो कि वे स्वयं देते हैं, अपने में मौलिक है। दो हजार ग्यारह के अपने इस अंतिम स्तंभ में वही प्रश्न मैं, अदना-सा एक इंसान, भारत माता की छवि से पूछना चाहता हूं...
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