साहित्य में कबीर की उलटबांसियां प्रसिद्ध हैं। गहरे से गहरे दार्शनिक रहस्यों को बताने के लिए कबीर जीवन के कुछ ऐसे विरोधाभासों का सहारा लेते हैं, जिनमें ऊपर से कुछ और दिखाई देता है, किंतु अंदर कुछ और होता है। वैश्वीकरण के साथ ही दुनिया में एक नई शब्दावली आई है, जो कुछ-कुछ उलटबांसियां जैसी ही हैं। जैसे वैश्वीकरण, भूमंडलीकरण, जगतीकरण या जागतिकीकरण को ही लें, जो ग्लोबलाइजेशन के विविध...
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बढ़ती बेरोजगारी के बीच- गिरीश मिश्र
नौजवानों के लिए इससे बड़ी त्रासदी क्या हो सकती है कि जब वह शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होकर उत्पादन के क्षेत्र में उतरने को तत्पर होता है, तब उससे कह दिया जाता है कि उसकी आवश्यकता नहीं है। ऐसे में उसका खुद पर गुस्सा लाजिमी है कि उसने अपने परिवार के संसाधनों का इस्तेमाल खुद को राष्ट्रीय उत्पादन में योगदान करने लायक बनाने के लिए व्यर्थ किया। मां-बाप...
More »मीडिया के नए मापदंड- पुण्य प्रसून वाजपेयी
अपराध जगत की खबर देने वाला एक पत्रकार मारा गया। मारे गए पत्रकार को अपराध जगत की बिसात पर प्यादा भी एक दूसरे पत्रकार ने बनाया। सरकारी गवाह एक तीसरा पत्रकार ही बना। यानी अपराध जगत से जुड़ी खबरें तलाशते पत्रकार कब अपराध जगत के लिए काम करने लगे, यह पत्रकारों को पता ही नहीं चला। या फिर पत्रकारीय होड़ ही कुछ ऐसी बन चुकी है कि पत्रकार अगर खबर बनते लोगों का...
More »सुधारों को नहीं मिली तेज धार ।।सुरजीत एस भल्ला।।
यूपीए सरकार की दूसरी पारी शुरू होने के कुछ महीने बाद ही लेहमैन ब्रदर्स और एआइजी जैसे बड़े नामों को ढहने के साथ ही वैश्विक आर्थिक मंदी की शुरुआत हो गयी थी. यूरोप की बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं और अमेरिका आर्थिक मंदी के भंवर से आज तक नहीं निकल पाये हैं, वहीं भारत मंदी के बाद भी आठ फ़ीसदी की विकास दर बरकरार रखने में कामयाब रहा था. यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के कहर...
More »बोतल में बंद पानी- राम प्रताप गुप्ता
इस व्यवसाय में उतरी कंपनियों का सरोकार लाभ तक ही सीमित पिछले दशकों में हमारे देश में जल दोहन की जो व्यवस्था अपनाई गई, उसके परिणामस्वरूप देश के अधिकांश भागों में भूजल भंडार अतिदोहन के शिकार से अपनी क्षमता खो रहे हैं। पानी की भारी मात्रा उलीचे जाने तथा बदले में उनमें नगरों-कसबों और उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषित और गंदा पानीमिलाए जाने से नदियों का पानी भी पीने के...
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