एक ऐसे समय में जब अर्थजगत में बुद्धिमानी का पर्याय यह बन चला है कि अर्थसत्ता के खेल के लिए मैदान खुला छोड़ दिया जाय और सामाजिक-क्षेत्र पर होने वाले खर्चों में कटौती की जाय, एक रिपोर्ट का कहना है कि भुखमरी और खासतौर से बाल-कुपोषण मिटाने की दिशा में प्रयास करना अपने आप में बुद्धिमानी का काम है। रिपोर्ट में यूपीए सरकार की प्राथमिकताओं में शुमार किए जाने वाले...
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अनपढ़ आरटीआइ कार्यकर्ता
सहारिया जनजाति मुख्य रूप से मध्य प्रदेश में पायी जाती है. मध्य प्रदेश से सटे राजस्थान के बारां जिले के शाहबाद और किशनगढ़ प्रखंड में भी इनकी ठीकठाक संख्या है. यहां सहारिया लोगों के पास किसी जमाने में काफ़ी जमीन हुआ करती थी. लेकिन कोई दस्तावेज नहीं होने के कारण धीरे- धीरे इनकी जमीनों पर गैर ओदवासियों और दबंगों ने कब्जा कर लिया. सरकार ने सहारिया को आदिम जनजाति का दरजा दिया...
More »कम होती बच्चियां- मधु पूर्णिमा किश्वर
लगातार गिरता बाल लिंग अनुपात, खासकर छह साल की उम्र में प्रति 1,000 बालकों की तुलना में गिरती बालिकाओं की संख्या, इसका सुबूत है कि हमारे देश में गर्भस्थ शिशु का लिंग पता करने की दुष्प्रवृत्ति को रोकने से संबंधितकानून कितना लचर है। छह साल तक के आयु वर्ग में बालिकाओं का घटता अनुपात दरअसल कन्या भ्रूणहत्या का नतीजा है, जो गर्भस्थ शिशु के लिंग की जांच का परिणाम है।...
More »बिहार के किसानों संग हुआ ऐसा कि चेहरे पर तैरने लगी खुशियां
पटना. बिहार के वैशाली जिले के सब्जी उत्पादक किसान सुनील कुमार ने इस वर्ष अपने परिवार के साथ न केवल होली धूमधाम से खेली, बल्कि अपने दो छोटे-छोटे बच्चों और बूढ़ी मां के लिए नए कपड़े भी खरीदे। राज्य में केवल सुनील ही ऐसे नहीं थे जिन्होंने अपने परिवार के साथ होली की खुशियां बांटी, बल्कि ऐसे कई सब्जी उत्पादक थे जिन्होंने उपज में वृद्धि से खुश होकर पूरे मन से होली मनाई। औरंगाबाद...
More »असम के चाय-बागान में भुखमरी से मौत
इतिहासकार बताते हैं कि अंग्रेजीराज के समय देश के पूर्वोत्तर के चाय-बागानों में काम करने वाले मजदूर बड़ी दीन-दशा में थे, तकरीबन बंधुआ मजदूर की दशा में। आजादी के बाद, इनकी दशा कुछ सुधरी। गुजरे कुछ दशकों में देश के चाय-उद्योग ने उन सालों में भी मुनाफा कमाया जिन सालों को आर्थिक-प्रगति के लिहाज से बेहतर नहीं माना जाता। ठीक इसी कारण, असम के चाय-बागानों से आने वाली भुखमरी की...
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