जनसत्ता 11 अक्तूबर, 2013 : कई गंभीर घटनाएं हो रही हैं, लेकिन लोगों का मानस इस तरह का बना दिया गया है कि वे किसी विषय के इतिहास को लेकर तो बोलते हैं, उसके मौजूदा हालात पर कुछ सुनने को तैयार नहीं होते। कई बार लगता है कि सुनने की शारीरिक प्रक्रिया को भी एक खास तरह के ढांचे में ढाल देने में बाजारवादी विचारों को कामयाबी मिली है। तात्कालिक संदर्भ...
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तभी अपराध मुक्त होगी राजनीति- नृपेन्द्र मिश्र
राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ जारी अभियान अपने निर्णायक मोड़ पर है, लेकिन इसे अभी खत्म नहीं माना जा सकता। तब तो और नहीं, जब हमारे संसदीय लोकतंत्र की नैतिकता में लगातार गिरावट की चिंता स्पष्ट है और इस पर सार्वजनिक तौर पर चर्चा भी हो रही है। इस दिशा में सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला 10 जुलाई, 2013 को आया, जिसमें देश की सबसे बड़ी अदालत ने जन प्रतिनिधित्व...
More »डिग्री है, पर नौकरी नहीं
देश आर्थिक मंदी से जूझ रहा है. सरकार ने इससे निबटने के उपाय के रूप में अपने खर्चो में कटौती का एलान किया है. इसमें कहा गया है कि अगले एक साल तक केंद्र सरकार कोई नयी नियुक्ति नहीं करेगी. यानी एक तरफ रोजगार छिन रहे हैं, दूसरी ओर रोजगार के नये अवसरों पर भी फिलहाल विराम लग गया है. ।।सेंट्रल डेस्क।। अगले साल लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं. यह समय...
More »भ्रष्टाचार का भयावह मंजर- ज्ञान प्रकाश पिलानिया
जनसत्ता 17 सितंबर, 2013 : हाल ही में ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की ‘वैश्विक भ्रष्टाचार: बैरोमीटर-2013’ रिपोर्ट में एक बार फिर यह उजागर हुआ है कि भारत में भ्रष्टाचार दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले दुगुनी रफ्तार से बढ़ रहा है। विश्व के सत्ताईस फीसद लोगों ने कहा कि उन्होंने पिछले साल भर के दौरान रिश्वत देकर काम कराया है। लेकिन अकेले भारत में यह आंकड़ा चौवन फीसद रहा। यानी हर दो में...
More »फूड बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी
नयी दिल्ली:देश की 67 %आबादी को सब्सिडी प्राप्त खाद्यान्न का कानूनी अधिकार दिलाने का लक्ष्य रखनेवाले महत्वपूर्ण खाद्य सुरक्षा बिल को गुरुवार को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गयी. खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने कहा, कानून को जल्द ही सरकारी राजपत्र में अधिसूचित किया जायेगा. कानून प्रति व्यक्ति प्रत्येक माह पांच किलो चावल, गेहूं, मोटा अनाज क्रमश: तीन, दो और एक रुपये की दर से देने की गारंटी करता है. केंद्र ने योजना को...
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