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25 करोड़ की योजना में लगे 10 अरब

पटना। विभागीय लापरवाही, लाल फीताशाही और लेटलतीफी के दलदल से निकलकर करीब चार दशक बाद दुर्गावती जलाशय परियोजना जनता की सेवा के लिए तैयार है। 10 जून 1976 को 25.30 करोड़ रुपये लागत के अनुमान के साथ शुरू हुई योजना पर अब तक आठ सौ करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं और मुकम्मल तौर पर 1064.28 करोड़ रुपये खर्च होंगे। परियोजना का उद्घाटन बुधवार 15 अक्टूबर को होगा। रोहतास और कैमूर...

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छत्‍तीसगढ़ के धान की देशी किस्मों को मिलेगी अंतरराष्ट्रीय पहचान

दिलीप साहू, रायपुर । धान का कटोरा छत्तीसगढ़ में 23 हजार से अधिक देशी किस्में हैं। इनमें से 90 फीसदी किस्में केवल रिसर्च संस्थानों तक सिमटकर रह गई हैं। छत्तीसगढ़ की इन देशी किस्मों को अब अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगी। इस बार इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने यहां संरक्षित 23 हजार 250 किस्मों को खेतों में लगाया है। इससे इन किस्मों के बीज की मात्रा में बढ़ोतरी होगी। इसके बाद इनमें...

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मप्र में उद्योग लगाइए, प्रोडक्ट की हम करेंगे मार्केटिंग: मुख्‍यमंत्री

इंदौर। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों का कद बढ़ाते हुए राज्य सरकार इनके लिए अलग मंत्रालय बनाएगी। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट-2014 के पहले दिन बुधवार को जब मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने इसकी घोषणा की तो ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर का हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से भर गया। इसके साथ ही लघु उद्यमियों की लंबे समय से चली आ रही मांग भी पूरी हुई। मुख्यमंत्री ने लघु उद्यमियों से यह वादा भी किया...

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मेक इन इंडिया से मेड इन इंडिया तक - डॉ. पीके चांदे

भारत व जापान अपनी समृद्ध संस्कृतियों के साथ दो महान एशियाई सभ्यताएं हैं। लेकिन हम उनके और अपने विकास के बीच बड़ा फर्क देखते हैं। जापान एक ऐसा देश है, जिसने अपनी रचनात्मकता को उभारा और अपने विकास को वैश्विक व्यवस्था के मुताबिक बनाया। शुरुआत में हमने उनके उत्पाद की गुणवत्ता पर सवाल उठाए, लेकिन आज जापान अपनी गुणवत्ता, विश्वसनीयता और निर्माण प्रक्रियाओं के लिए ही जाना जाता है। अनेक...

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आदिम युग जैसी सुविधाएं, कहीं स्टोर रूम तो कहीं पेड़ के नीचे लगती है क्लास

अजमेर/जयपुर. राज्य में सरकारी स्कूलों पर खर्च बढ़ता जा रहा है, लेकिन स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षा की गुणवत्ता में कोई बदलाव नहीं हो रहा है। पांचवीं और आठवीं कक्षा वाले स्कूलों में बच्चों को बैठने के लिए कुर्सी टेबल नहीं हैं। शिक्षकों को भी कुर्सी बमुश्किल ही मिलती है। पेड़े के नीचे, बरामदे या ऊबड़-खाबड़ जमीन पर ही बैठाकर बच्चों को पढ़ाया जाता है। 5 हजार स्कूलों में टॉयलट...

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