आजादी के बाद भूमि सुधार की बात तो हुई लेकिन यह किसी पार्टी के एजंडे में नहीं रहा। विषमताओं और गैरबराबरी वाले भारत में इस बुनियादी मुद्दे को भुला महाजनों और मानसून पर निर्भर किसानों को विश्व बाजार के मंच पर अकेला छोड़ दिया गया। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर सभी सरकारें चुप हैं। जब लोगों के जीने-मरने का सवाल पैदा हो रहा हो तो उनके सामने नोटबंदी और डिजिटल...
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मंदी के दौर में गोरक्षा-- तवलीन सिंह
जब अर्थव्यवस्था में मंदी के आसार दिखने लगे हैं और वित्तमंत्री गौमाता की बातें करते हैं अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में तो साफ जाहिर है कि हिंदुत्व सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है वर्तमान भारत में। हर हफ्ते सोचती हूं किसी दूसरे विषय पर लिखने का, लेकिन कुछ न कुछ ऐसा हो जाता है कि मजबूर होकर हिंदुत्व पर ही अटकी रहती हूं। इस बार तब रहा न गया, जब राजस्थान...
More »क्यों धैर्य खो रहे हैं किसान-- संजीव पांडेय
महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में किसान उग्र हो गए हैं। दोनों राज्यों में किसान आंदोलन हिंसक हो गया। मध्यप्रदेश में पुलिस फायरिंग में छह किसानों की मौत हो गई। यह घटना पूरे देश के लिए चेतावनी है क्योंकि किसानों ने अब शांतिपूर्वक आंदोलन के बजाय हिंसक रास्ता अख्तियार कर लिया है। कर्ज के बोझ तले दबे किसान फसलों की संतोषजनक कीमत न मिलने के कारण सड़कों पर उतर आए। सरकार की...
More »प्रचारों पर टिकीं उपलब्धियां-- पवन कुमार वर्मा
संसार की सच्चाइयों के परे, क्या कहीं प्रचार-प्रसार की कोई सीमा भी है? क्या सभी चीजें उनकी वास्तविकताओं में नहीं, वरन उनकी प्रस्तुति में ही परखी जा सकती हैं? क्या सत्य स्व-विज्ञापन के वाष्प से सृजित एक मरीचिका मात्र है? या कि यदि विज्ञापन अपने दावे के अतिरेक की वजह से वास्तविकता से बहुत विलग हो जाये, तो वह स्व-विनाशक भी हो उठता है? हमारी वर्तमान सरकार प्रचार की जिस...
More »रोजी बनाम राम- एकै साधे सब सधे--- मुकेश भारद्वाज
सरकार के हर मंच से नोटबंदी को सही बताने के बाद 2016-17 की चौथी तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि सकल घरेलू उत्पाद दर घट कर 7.1 से 6.1 फीसद पर आ गई। बाजार में तरलता की कमी से मांग घटी और छोटे कारोबारियों की कमर टूट गई। अब जबकि जीएसटी के अमल का समय नजदीक आ रहा है, सरकार जमीनी सच्चाई को नकारते हुए कमजोर अर्थव्यवस्था का ठीकरा...
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