जनसत्ता 14 जुलाई, 2014 : भीतर और बाहर के सूने सपाट में अकस्मात यह कैसी तरंग उठी और उठ कर फैलती ही गई! महज एक काव्य-पंक्ति, सबकी जानी-मानी एक सुविख्यात कवि की क्यों इस तरह अयाचित और अकस्मात मन में कौंध उठी कि मुझे लगने लगा- मुझे जो कुछ कहना था वह मैंने कह दिया और कहने के साथ ही कर भी दिया। कुछ इस तरह कि मानो जो कुछ भीतर...
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गांव-देहात व किसान से वास्ता नहीं- केसी त्यागी
आम बजट और रेल बजट को देख कर यह सहज रूप से कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार बजट के पीछे राजनीति कर रही है. राजनीति इस अर्थ में कि जो भाजपा कहती है, वह करती नहीं है. जो वादा करती है, उसके पीछे उसकी मंशा क्या है, तथा आम आदमी के प्रति वह कितनी हमदर्द है, वह आम बजट और रेल बजट से साबित हो गया है. सरकार...
More »वंचित भारत की कहानी- इंडिया एक्सक्लूजन रिपोर्ट की जुबानी
‘अतुल्य भारत' के भीतर एक वंचित भारत रहता है,दलित और आदिवासी समुदाय इसी वंचित भारत के वासी हैं। क्या इस वंचित भारत का निर्माण राज्यसत्ता के हाथों जीवन के लिए जरुरी बुनियादी सेवा-सामानों से लोगों को बेदखल करके हुआ है? जैसा कि नाम से ही जाहिर है,इंडिया एक्सक्लूजन रिपोर्ट 2013-14 का एक निष्कर्ष यह भी है! (कृपया देखें नीचे दिया गया रिपोर्ट की भूमिका की लिंक) मिसाल के लिए इन...
More »किसानों के लिए आनेवाले दिन बहुत भारी- देविंदर शर्मा
भारतीय मॉनसून के लिए अल नीनो, एक विलेन की तरह माना जाता है. अल नीनो की मार से ऑस्ट्रेलिया और भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. अल नीनो से सामान्य मॉनसून की हालत बिगड़ने का अंदेशा है, जिससे बारिश कम होने की आशंका जतायी जा रही है. देश के मौसम विभाग ने इस वर्ष अल नीनो के आने की 70 फीसदी तक उम्मीद जतायी है. दरअसल, मॉनसून के सबसे बीचवाले...
More »मोटे अनाज की खेती से बहुरे किसानों के दिन
किसानों के लिए वह स्थिति और भी कष्टदायी होती है, जब मॉनसून फेल हो जाने या कम वर्षा होने के कारण वह सही तरीके से धान की फसल की बुआई नहीं कर पाते हैं. कृषि वैज्ञानिक किसानों को हमेशा यह सलाह देते हैं कि ऐसी स्थिति में उन्हें खेती के दूसरे विकल्प को अपनाने के लिए तैयार रहना चाहिए. खेती के लिए फसल के दूसरे विकल्पों में मक्का तथा मडुवा के...
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