किसी भी लोकतांत्रिक देश में जब भी कोई संकट की घड़ी आती है, तो उस दौरान उसके प्रशासनिक प्रतिष्ठानों की एक तरह से परीक्षा होती है. लोकतंत्र का भविष्य इससे तय होता है कि ये प्रतिष्ठान कितने गंभीर झटकों को आत्मसात कर सकते हैं. इसमें सबसे महत्वपूर्ण हैं अदालतें और उसमें भी सर्वोपरि है सुप्रीम कोर्ट. समय-समय पर अन्य सत्ता प्रतिष्ठानों पर भले ही सवाल उठते रहे हों, लेकिन न्यायपालिका...
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किताबों से दूर जाती पीढ़ी-- हरिवंश चतुर्वेदी
वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा नजदीक है, जिस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा के साथ पुस्तकों व कलम की भी पूजा होती है। नए वर्ष के आगमन के साथ पुस्तक मेलों का सिलसिला भी शुरू हो गया है। दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले का समापन हो चुका है। अगले दो-तीन महीनों में कोलकाता, मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, पटना और भुवनेश्वर जैसे महानगरों में होने वाले पुस्तक मेलों में...
More »भीमा कोरेगांव का प्रतीक-- अनुज लुगुन
दासता से मुक्ति के पूर्वज के रूप में स्पार्टाकस को याद किया जाता है. रोमन साम्राज्य की महानता के नीचे दासों की सिसकियां दबी हुई थी. गौरव, वैभव और विस्तार शासक की चाबुक और दासों की पीठ पर टिकी थी. यह ऐसी नृशंसता थी, जो लोगों को दिखती तो थी, लेकिन उन्हें पीड़ा के बजाय उससे सुख मिलता था. समाज, कानून और उसकी मान्यताएं 'ग्लैडिएटर' की मौत पर उत्सव मनाते थे....
More »आधार के कारण 28 लाख पेंशनर बुजुर्ग हो गये बे-आधार!
2014-15 में इंदिरा गांधी पेंशन पाने वाले बुजुर्गों की संख्या थी 46 लाख 50 हजार 766 पटना : आधार कार्ड की अनिवार्यता ने बिहार में बुजुर्गों की संख्या में 28 लाख की कमी ला दी है. वित्तीय वर्ष 2014-15 से लेकर 2016-17 तक यानी तीन सालों में यह बड़ी कमी आयी है. जहां 2014-15 में बिहार में सामाजिक सुरक्षा पेंशन के तहत इंदिरा गांधी पेंशन पाने वाले बुजुर्गों की संख्या 46...
More »'हम दो हमारे दो' का सपना अभी भी अधूरा, लेकिन कम हुई है जन्मदर
नयी दिल्ली : हिंदू और मुस्लिमों को छोड़कर देश में रहने वाले अन्य समुदायों की बात करें तो उनमें बच्चे पैदा करने की दर में खासी कमी दर्ज की गयी है. यही नहीं , यह स्तर रिप्लेसमेंट लेवल से भी कम हो चुका है. इसका मतलब यह है कि यदि बच्चे इस रफ्तार से पैदा हुए तो भविष्य में समुदाय की आबादी मौजूदा संख्या से भी कम रह जाएगी. हिंदुओं...
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