भारत में किसान को अन्नदाता की उपाधि दी गई। पर आज वह निराश नजर आ रहा है। कृषि उपज का वाजिब मूल्य न मिलने से वह परेशान है। किसान को कर्ज लेना पड़ रहा है। वही उसके लिए जानलेवा साबित होता जा रहा है। किसानों की आत्महत्याओं में दिन-प्रतिदिन इजाफा हो रहा है। भारत में किसान आत्महत्या 1990 के बाद पैदा हुई स्थिति है, जिसमें प्रतिवर्ष दस हजार से...
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अकथ कहानी खेत की-- राकेश दीवान
जून महीने के बीस दिनों में हुर्इं चालीस से अधिक किसानों की आत्महत्याओं का किसी के पास कोई जवाब नहीं है। किसान आंदोलन से निपटने के लिए सरकार को ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य' पर केवल तुअर, मूंग और उड़द खरीदने और आठ रुपए किलो में प्याज खरीदने और फिर भंडारण की कमी के चलते सड़ाने की तजवीज भर नजर आई। आज भी किसानी ‘अन-स्किल्ड' यानी अकुशल श्रम भर मानी जाती है...
More »कर्जमाफी नहीं है समाधान -- देविंदर शर्मा
इस हफ्ते की शुरुआत मध्य प्रदेश के 42 वर्षीय किसान रमेश बसेने की आत्महत्या के साथ हुई। हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी खबर में बताया गया था कि उस पर 25,000 रुपये का कर्ज था। कुछ ही हफ्ते पहले महाराष्ट्र के एक किसान की 21 वर्षीया बेटी शीतल व्यंकट की आत्महत्या की भी दुखद खबर आई थी। अपनी शादी के लिए पैसे के इंतजाम को लेकर पिता की परेशानी उससे...
More »कृषि ऋण माफी के आईने में-- वरुण गांधी
साल 1865 में अमेरिकी गृहयुद्ध के खत्म होने के बाद अमेरिका में कपास उत्पादन को फिर से बढ़ावा मिलने का नतीजा यह हुआ था कि वहां भारतीय कपास की मांग काफी कम हो गयी. इसके चलते बंबई प्रेसिडेंसी में किसानों से कपास की खरीद में कमी आयी और भुगतान-संबंधी मांग बढ़ गयी. कर्जदाता इच्छुक किसानों को कर्ज देने में हिचकने लगे या फिर वे बहुत ज्यादा ब्याज पर कर्ज देने...
More »क्या असर होगा यूपी के खेतिहरों पर मांसबंदी का ?
अगर आपके मन में यह सवाल कौंध रहा है कि 'मांसबंदी' के नये फरमान के एकबारगी अमल में आने से यूपी के पशुपालकों पर क्या असर पड़ेगा तो नीचे लिखे तथ्यों को पढ़िए ! पशुगणना के नये आंकड़ों के मुताबिक देश में भैंस प्रजाति के पशुओं की संख्या 10 करोड़ 80 लाख है. इसका एक चौथाई से ज्यादा (28.7प्रतिशत) केवल यूपी में है. यूपी में भैंसों की संख्या राजस्थान से ढाई गुनी, आंध्रप्रदेश और गुजरात से तीन...
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