लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव खारिज हो गया. सरकार संसद में पहले भी सुरक्षित थी, अब और भी आश्वस्त हो गयी. विपक्ष भी सरकार पर कुछ छींटाकशी कर खुश हो गया. गले से कहने में जो कसर रह गयी, वह गले लगकर पूरी की गयी. सत्ताधारी मोर्चे में कुछ टूट-फूट होने से विपक्ष भी आश्वस्त है. मीडिया को भी मसाला मिल गया- मोदी जी और राहुल गांधी के गले पड़ने की फोटो...
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हिंसा की संस्कृति पर लगे रोक-- प्रो. उज्ज्वल के चौधरी
लिंचिंग यानी बेकाबू भीड़ के हाथों लोगों की हत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. हालांकि यह एक सार्वजनिक अपराध है पर सरकार मौन है. इसकी एक बानगी इसी बात से मिल जाती है कि इसे अभी तक आइपीसी के तहत एक अलग अपराध के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया है. इसलिए, इसके बारे में सारी जानकारी मीडिया में आयी खबरों और विभिन्न रिपोर्टों में दिये तथ्यों पर आधारित...
More »जाति से आगे नहीं सोचती राजनीति-- बद्री नारायण
जातियों का उद्भव राजनीति के लिए नहीं हुआ था। मगर आज जातियां भारतीय राजनीति को आधार दे रही हैं। कहते हैं कि जातियों का उद्भव व्यवसायों व पेशों से जुड़ा था। पहले पेशे से ही जातियां निर्धारित होती थीं। फिर ये ‘जन्मना' अर्थात जन्म से जुड़ गईं। आज के दौर में, जब जातियों को ‘पहचान ' से जोड़कर उनका आक्रामक राजनीतिक इस्तेमाल किया जाने लगा है, तब इनकी एक नई...
More »नई जमीन तलाशती राजनीति-- बद्रीनारायण
चुनावी राजनीति में कई बार छोटी दिखने वाली राजनीतिक पार्टी या राजनीतिक शक्ति महत्वपूर्ण हो उठती है। लोकतांत्रिक संयोग उसे सहसा महत्वपूर्ण बना देता है। कुछ सप्ताह पहले कर्नाटक विधानसभा चुनाव का पूरा विमर्श दो दलों- कांगे्रस और भाजपा पर केंद्रित था। चुनाव के बाद उपजी स्थितियों के कारण सहसा जनता दल (सेकुलर), जो तीसरे नंबर की पार्टी थी, महत्वपूर्ण हो उठी। इस घटना का दूसरा महत्वपूर्ण निहितार्थ राष्ट्रीय स्तर...
More »श्रमिक वर्ग का सर्वहारा समीकरण-- हरजिंदर
बात लगभग तीन साल पहले की है। न्यूयॉर्क में अमेरिका के लेफ्ट फोरम यानी वाम मंच ने तीन दिन का एक सम्मेलन किया। इसमें दुनिया भर के कई कार्यकर्ता जमा हुए। तमाम विश्वविद्यालयों के कई नामी-गिरामी प्रोफेसर वहां आए। अपनी सोच से दुनिया की एकमात्र वास्तविक व्याख्या का दावा करने वाले ‘फ्री थिंकर' भी वहां भारी संख्या में थे। गायक, कलाकार, रंगमंच के निर्देशक, अभिनेता, कुल मिलाकर बौद्धिक जगत की...
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