-वाटर पोर्टल, राष्ट्रीय जल मिशन ने मानसून से पहले वर्षा जल संग्रहण के ढांचों को तैयार करने हेतु राज्यों और हितधारकों को प्रोत्साहित करने के लिए पैन इंडिया के आधार पर ‘‘कैच द रेन’’ अभियान शुरू किया था। फरवरी 2020 को ‘कैच द रेन, जहां वह गिरती है, जब वह गिरती है’’ टैगलाइन के साथ शुरू किए गए इस अभियान के अंतर्गत चेकडैम, वाटर हार्वेस्टिंग पिट्स, रूफटाॅप बनाने के साथ-साथ चैकडैम,...
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कोरोनावायरस के बाद जीडीपी में गिरावट की वजह से भी होंगी मौतें: रिपोर्ट
-डाउन टू अर्थ, देश में कोरोनावायरस की वजह से अब तक 50 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी हैं, लेकिन कोरोनावायरस की वजह से राज्यों की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में आई गिरावट भी लोगों की मौत का कारण बन सकती है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अर्थशास्त्रियों द्वारा जारी की जाने वाली इकोरैप रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन राज्यों की जीडीपी में 10 फीसदी से अधिक...
More »अर्थात्ः आने वाला कोई तूफान है!
-इंडिया टूडे, प्रत्येक शांति शुभ नहीं होती! जैसे तूफान से पहले की शांति. बैंक की बोर्ड मीटिंग से निकलते हुए पुराने बैंकर ने यह बात कही और फिर ऑफिस के गलियारों में गुम हो गया. उधर, बैंक के आला अफसर ताजा सुर्खियों के मतलब समझने में जुटे थे. ■ नीति आयोग ने तीन बैंकों (पंजाब ऐंड सिंध, यूको, बैंक ऑफ महाराष्ट्र) का तत्काल निजीकरण करने को कहा है, जिन्हें कोई बड़ा सरकारी...
More »बेंगलुरू हिंसा: दूसरे के धर्म पर टिप्पणी क्यों; हिंसा पूरी तरह ग़लत
-सत्यहिंदी, बेंगलुरू में हुई हिंसा से क्या कोई प्रसन्न हो सकता है? क्या कोई उसका समर्थन कर सकता है? लेकिन ऐसा मानने वाले लोग इस समाज में हैं जो यह मानते हैं कि इस हिंसा की हिमायत करने वाले लोग सभ्य समाज में मौजूद हैं। हिंसा के दौरान ही जब बहुत सारे लोग हैरान थे और उसे समझने की कोशिश कर रहे थे, एक ख़ास तबके में एक विकृत प्रसन्नता देखी...
More »मोदी सरकार और रिजर्व बैंक 2008 के संकट में की गई भूलों से सबक ले सकते हैं, मगर समय हाथ से निकल रहा है
-द प्रिंट, लॉकडाउन में पांचवां महीना बीत रहा है मगर कोविड-19 की महामारी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है और अर्थव्यवस्था निरंतर नीचे फिसलती जा रही है. आधुनिक भारत ने ऐसी महामारी पहले नहीं झेली थी, लेकिन इसका आर्थिक प्रभाव जाना-पहचाना है— सुस्त आर्थिक वृद्धि, ऊंची मुद्रास्फीति, और बेहिसाब बुरे कर्जों का घातक मेल. 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी) के बाद के दौर में भी यही स्थिति थी....
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