SEARCH RESULT

Total Matching Records found : 662

धनी देशों की कमजोर इच्छाशक्ति से निराशा

रियो-डी जिनेरियोः भारत ने गुरुवार को कहा कि हरित अर्थव्यवस्था के उद्देश्यों के कार्यान्यवन के लिए विकासशील देशों को बढ़े साधन मुहैया कराने में विकसित देशों की कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति से वह निराश है. यदि इस प्रक्रिया को लोकतांत्रिक तरीके से लागू नहीं किया गया, तो वह आंखों में धूल झोंकने के बराबर होगा. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित करीब 100 विश्व नेता यहां रियो+ 20 पर्यावरण शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे...

More »

हजारों एकड़ जमीन, 193 कम्पनियां : इन मंत्री जी के पास है बस इतनी सी संपत्ति

मुंबई। परिवहन राज्यमंत्री गुलाबराव देवकर के बाद राज्य के वरिष्ठ मंत्री सुनील तटकरे भी भ्रष्टाचार के मामले में फंसते नजर आ रहे हैं।   उपमुख्यमंत्री अजित पवार के बेहद करीबी तटकरे पर काला धन, आय से अधिक संपत्ति और आयकर चोरी के आरोप लगाते हुए शेकाप नेता जयंत पाटील ने कहा है कि तटकरे ने काले धन के मार्फत हजारों करोड़ रुपए का साम्राज्य खड़ा किया। उन्होंने अपने परिवार और निकटवर्तियों के...

More »

खबरों का ट्विटरीकरण!- राजदीप सरदेसाई

हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान मैंने बाबा रामदेव, जो टेली-फ्रेंडली योगगुरु के साथ ही अब कालेधन के विरुद्ध मोर्चा खोल लेने वाले आंदोलनकारी भी बन गए हैं, से पूछा कि उनकी संपदा का राज क्या है? उन्होंने तपाक से कहा : ‘इस तरह के प्रश्न क्यों पूछ रहे हो? तुम भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में हमारे साथ हो या दुश्मनों के साथ?’ आह! भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ रहे...

More »

भड़की चिंगारी: अपनी ही जमीन पाने के लिए सड़क पर आए तीन हजार किसान-मछुआरे - विनोद यादव

रत्नागिरी (महाराष्ट्र). जैतापुर न्यूक्लियर पॉवर प्रोजेक्ट (जेएनपीपी) के खिलाफ विरोध की चिंगारी एक बार फिर भड़क उठी है। बुधवार को करीब तीन हजार किसानों-मछुआरों ने अपने पशुओं के साथ प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित की गई अपनी जमीन पर कब्जा लेने का असफल प्रयास किया। कोंकण एंटी-न्यूक्लियर पॉवर प्रोजेक्ट कमेटी के पदाधिकारी प्रदीप इंदुलकर का कहना है कि पुलिस ने शांतिपूर्ण ढंग से अपनी जमीन वापस लेने के लिए प्रदर्शन कर रहे...

More »

हिंसक प्रतिरोध कितना उचित- हर्षमंदर

बहुतेरी संस्कृतियों में अन्याय के प्रतिरोध को सर्वोच्च मानवीय दायित्व का दर्जा दिया गया है। इसी क्रम में एक बहस सदियों से जारी है और आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। यह है अत्याचार और अन्याय के प्रतिरोध में हिंसा की वैधता। सवाल यह है कि अगर राज्यसत्ता के कुछ सशक्त प्रतिनिधि अगर अन्यायपूर्ण हो गए हों तो क्या उनके प्रतिरोध के लिए हिंसा उचित है? दूसरे शब्दों में क्या न्याय के...

More »

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close