फिल्म ‘पीपली लाइव' का एक गीत काफी लोकप्रिय हुआ था। इस गीत के माध्यम से एक प्रमुख सामाजिक-आर्थिक समस्या महंगाई की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया गया है। गीत के बोल हैं- ‘सइयां तो बहुत कमात हैं, महंगाई डायन खाए जात है।' यानी रात-दिन काम करने के बावजूद कमाई की अपेक्षा महंगाई कई गुना अधिक बढ़ती जा रही है। इसलिए घर में जो जरूरी पदार्थ आने चाहिए, वे...
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क्या जरूरी है कि नींद झटके से ही खुले? - गोपालकृष्ण गांधी
मैंने कक्षा में सिंधु घाटी सभ्यता पर लेक्चर खत्म किया ही था और सोच रहा था कि क्या मुझे अगली क्लास में सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के कारणों (जिनमें भूकंप भी शामिल है) पर बात करनी चाहिए कि तभी मेरी कुर्सी, डेस्क, लैपटॉप सभी डगमगाने लगे। वास्तव में, ऐसा लग रहा था, जैसे पूरी दुनिया ही डोल रही हो। चंद मिनटों बाद मैंने इस भूकंप के बारे में और...
More »दामों में कमी: ढीले पड़ने लगे दाल के तेवर
नई दिल्ली। दाल के जमाखोरों के खिलाफ सरकार की सख्ती का असर दिखने लगा है। थोक बाजार में इसके तेवर ढीले पड़ने लगे हैं। आसमान छूती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार की सलाह पर राज्य सरकारों की ओर से छापेमारी के चलते बाजार में दालों की आपूर्ति बढ़ी है। साथ ही आम लोगों को राहत देने के लिए अपनी तरफ से राज्यों की पहल ने भी महंगी...
More »जेब काट रहीं रोजमर्रा की चीजों की कीमतें : एसोचैम
नई दिल्ली। महंगाई की दर बेशक एक साल पहले के मुकाबले निचले स्तर पर बनी हुई है, लेकिन आम मध्यवर्ग के उपभोग की वस्तुएं और सेवाएं उसकी पहुंच से बाहर हो रही हैं। उद्योग चैंबर एसोचैम के एक विश्लेषण में यह निष्कर्ष निकला है। एसोचैम की रिपोर्ट कहती है कि ईंधन कीमतों में कमी और मामूली वेतनवृद्धि के बीच शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च जरूरत से अधिक बढ़े हैं। ये दोनों...
More »क्या आम आदमी की थाल में पहुंचेगी दाल?
अरहर समेत अन्य दालों की आसमान छूती कीमतों में सरकार के हालिया कदमों से कुछ गिरावट का रुख बना है, किंतु बाजार सूत्रों का मानना है कि वर्तमान परिस्थितियों में बहुत राहत की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। देश और वैश्विक स्तर पर दलहन उत्पादन में कमी के मद्देनजर इस वर्ष जून से दालों के भाव ने छलांग लगानी शुरू कर दी थी और पिछले करीब पांच माह के दौरान स्थिति...
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