नई दिल्ली। जेनरिक दवाएं गरीबों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। खासकर भारत जैसे विकासशील देश में इनकी अहमियत और हो जाती है, जहां गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली की बड़ी हिस्सेदारी है। दो जून की रोटी की जुगाड़ में लगे रहने वाले भारतीय परिवारों के कुल स्वास्थ्य पर खर्च का 72 फीसद केवल दवाओं के मद में जाता है। क्या हैं जेनरिक दवाएं: जब कोई दवा कंपनी किसी...
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मर्ज कुछ इलाज कुछ- मुकेश कुमार
जनसत्ता 23 मार्च, 2013: भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने पत्रकारों की योग्यता मापने के पैमाने तय करने के जिन उपायों की बात की है उनसे स्वाभाविक ही विवाद पैदा हो गया है। उनके अव्यावहारिक नुस्खों से किसी भी तरह सहमत नहीं हुआ जा सकता। पत्रकारिता में आई गिरावट के लिए जिन चीजों को वे जिम्मेदार बता रहे हैं, उन्हीं से पता चलता है कि वे समस्या...
More »मार्च के बाद भी इतनी ही रहेगी महंगाई: RBI
विनिर्मित उत्पादों संबंधी मुद्रास्फीति में नरमी के बावजूद खाद्य एवं ईंधन मुद्रास्फीति का दबाव बने रहने की संभावनाओं को देखते हुए आरबीआई का मानना है कि अगले वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति मौजूदा स्तर पर बनी रहेगी। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मौद्रिक नीति की आज जारी मध्य तिमाही समीक्षा में कहा...
More »खाद्य तेलों के आयात में 10.55 फीसदी बढ़ोतरी
फरवरी महीने में खाद्य तेलों के आयात में 10.55 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल आयात 969,175 टन का हुआ है। चालू तेल वर्ष 2012-13 के पहले चार महीनों (नवंबर-12 से फरवरी-13) के दौरान कुल खाद्य तेलों के आयात में 21.99 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल 3735,263 टन का आयात हुआ है। सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ...
More »हाशिये का समाज और राज- हरिराम मीणा
जनसत्ता 11 मार्च, 2013: किसी भी राष्ट्र-समाज के उन घटकों के सम्मिलित समाज को हाशिये का समाज कहा गया है, जो अगुआ तबके की तुलना में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक स्तर पर किन्हीं कारणों से पीछे रह गया है। इस सामान्यीकृत परिभाषा को विस्तार से समझने से पहले हाशिये शब्द पर थोड़ा विचार करना जरूरी है। किसी पृष्ठ में हस्तलेखन या टंकण करने से पूर्व शीर्ष पर और मुख्य रूप से बार्इं ओर...
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