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40 धड़कनें थम गई पर नहीं धड़की मिल

भागलपुर [आशीष]। साल-दर-साल भूख और बदहाली का दंश झेल रहे बिहार स्पन सिल्क मिल के कर्मचारियों के मुरझाए चेहरों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मिल को दोबारा खोलने की घोषणा भी मुस्कान नहीं लौटा सकी। सपनों को पल-पल टूटते हुए देखने वाले ये मिल कर्मचारी अब भगवान से मौत की मुराद मांग रहे हैं। मौत के लिए मनुहार करने वाले कर्मचारियों का तर्क है कि रोज-रोज मरने से अच्छा...

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130 साल की सेहतमंद व 45 लोगों का परिवार

नहटौर, बिजनौर [हरीश चौधरी]। यह खबर नहीं, आईना है। खासकर उन लोगों के लिए जो सिर्फ पत्नी और बच्चों के साथ ही जीवन में खुशियां ढूंढ़ते हैं। यूं कहें जिनका संयुक्त परिवार से कोई वास्ता नहीं रह गया है। उन्हें यह खबर बताएगी कि परिवार और परिवार का मुखिया होने का मतलब क्या होता है? हम जिस परिवार की बात कर रहे हैं, उसमें मुखिया 130 वर्ष की वृद्धा है। वह...

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अंग्रेज भी उत्तराखंडी खुशबू के मुरीद

देहरादून [केदार दत्त]। देहरादून देवभूमि से खुशबू को ऐसे पंख लगे कि वह घर से निकलकर सात समंदर पार की सैर में मशगूल हो गई। अरब के शेखों और समूचे यूरोप पर इसका ऐसा रंग चढ़ा वे इसके मुरीद हो गए हैं। इस बात की इससे तस्दीक होती है कि बीते सीजन में उत्तराखंड से चालीस हजार क्विंटल बासमती में से करीब अस्सी फीसदी का निर्यात खाड़ी और यूरोप...

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पालीथीन खा रहे हिरण, मारे फिर रहे चीतल-सांभर

बगहा [प.चंपारण, संजय कुमार उपाध्याय]। राज्य की इकलौती व्याघ्र परियोजना वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में हरित भूमि [ग्रास लैंड] की कमी से जंगल का कानून तो धराशायी हो ही गया है, इको टूरिज्म के फेल होने का भी खतरा बढ़ गया है। घास नहीं मिलने से जानवरों के समक्ष भूखे मरने की नौबत आ गई है। शाकाहारी जानवर पर्यटकों की फेंकी पालीथीन खाकर जीवन जोखिम में डाल रहे हैं तो मांसाहारी जानवरों को...

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विद्रोह के केंद्र में दिन और रातें

जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता और ईपीडब्ल्यू के सलाहकार संपादक गौतम नवलखा तथा स्वीडिश पत्रकार जॉन मिर्डल कुछ समय पहले भारत में माओवाद के प्रभाव वाले इलाकों में गए थे, जिसके दौरान उन्होंने भाकपा माओवादी के महासचिव गणपति से भी मुलाकात की थी. इस यात्रा से लौटने के बाद गौतम ने यह लंबा आलेख लिखा है, जिसमें वे न सिर्फ ऑपरेशन ग्रीन हंट के निहितार्थों की गहराई से पड़ताल करते हैं, बल्कि माओवादी...

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