जनजातीय भाषाओं के जानकार गिरधारी राम गौंझू झारखंड की संस्कृति-परिवेश की बारीक जानकारियां रखते हैं. वे बच्चों, विशेषकर वंचित समूह के बच्चों को स्थानीय भाषा में शिक्षा देने के पैरोकार रहे हैं. इसका यह मतलब कतई नहीं है कि वे हिंदी या अंगरेजी के विरोधी है. उनका जोर त्रिस्तरीय भाषा सूत्र पर है. एक शिक्षाविद के रूप में वंचित समूह के बच्चों को विकास की मुख्यधारा में लाने की कोशिश में...
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पंचायत में तय हो बच्चों के विकास की योजनाएं
जनजातीय भाषाओं के जानकार गिरधारी राम गौंझू झारखंड की संस्कृति-परिवेश की बारीक जानकारियां रखते हैं. वे बच्चों, विशेषकर वंचित समूह के बच्चों को स्थानीय भाषा में शिक्षा देने के पैरोकार रहे हैं. इसका यह मतलब कतई नहीं है कि वे हिंदी या अंगरेजी के विरोधी है. उनका जोर त्रिस्तरीय भाषा सूत्र पर है. एक शिक्षाविद के रूप में वंचित समूह के बच्चों को विकास की मुख्यधारा में लाने की कोशिश में...
More »भारत का 'चुप्पा' विकास जो किसी को नहीं दिखा
उस वक्त को गुजरे ज़्यादा दिन नहीं हुए जब भारत के सबसे ग़रीब ज़िलों में बुनियादी सुविधाएं बहुत कम और विरल थीं. ज़्यादातर लोग अपने हालात के भरोसे थे. इनमें से कुछ लोगों को भरे-पूरे प्राकृतिक वातावरण का संग-साथ हासिल था और शायद उनकी जिन्दगी में वह आज़ादी और उत्साह भी था जो आज खो गया है. लेकिन अन्य बहुत से लोग भूख, असुरक्षा और शोषण के साये में रहते थे...
More »एक साल में कितना बदला देश- मनीषा प्रियम
एक साल पहले दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की एक ऐसी घटना हुई थी, जिसने देश-दुनिया को झकझोर दिया था। तब से अब तक यह देश कई राजनीतिक-सामाजिक बदलावों का गवाह रहा है। ‘बिटिया’ के बलिदान ने ऐसा मंच तैयार किया, जहां देश की राजनीति और उसके निजी एवं बाह्य अंतर्विरोधों पर खुलकर बहस हुई है। वह एक अमानवीय और हृदय विदारक घटना थी। लेकिन उस घटना ने देश में परिवर्तन...
More »मताधिकार के मायने- संदीप जोशी
जनसत्ता 3 दिसंबर, 2013 : पिछले दिनों अचानक पूर्वी दिल्ली के रिहायशी इलाके निर्माण विहार के शांत और लगभग सूने बगीचे में चकाचौंध रोशनी देखी। चमाचम रोशनी ऐसी कि देखने वाले को सैर करने का न्योता हो। इसी बहाने अंधेरे में भी सैर हुई। संभ्रांतता दर्शाते हुए मॉल जैसी जगमगाहट पूरे बगीचे में फैली हुई थी। वहीं ध्यान आया कि दो हफ्ते में दिल्ली के विधानसभा चुनाव होने हैं। बगीचे की...
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