इस समय सकल घरेलू उत्पाद या ग्रास डोमेस्टिक प्रोडक्ट (जीडीपी) में वृद्धि वापस पटरी पर आ चुकी है। देश में कुल उत्पादन की मात्रा का ब्योरा जीडीपी से मिलता है। नोटबंदी से पहले हमारी जीडीपी की ग्रोथ रेट 7 से 8 प्रतिशत रहती थी। नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद यह ढीली पड़ गई थी। अब यह पुरानी दर पर वापस पहुंच गई है। दूसरा शुभ संकेत शेयर बाजार...
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क्या बैंक निजीकरण सही हल है?
भारत जैसे विशाल देश में 136 करोड़ लोगों के विकास की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बनी सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन में सरकारी बैंक प्रमुख भूमिका निभाते हैं. यदि ये न हों, तो विशालकाय केंद्रीय योजनाएं जैसे कि जन-धन योजना, मुद्रा योजना आदि कभी लागू ही न हो सकें. इन्हीं से ही व्यापक सामाजिक उत्थान का स्वप्न देखने में सरकार को एक ठोस धरातल मिलता है. यूनाईटेड बैंक आॅफ...
More »लाइलाज हो चुकी है एनपीए की बीमारी-- आदर्श तिवारी
बैंकों की तेजी से बढ़ती गैर निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) आज एक ऐसी लाइलाज बीमारी बन चुकी हैं जिसका इलाज विशेषज्ञों को भी नहीं सूझ रहा है। इसलिए ऐसे में सवाल उठता है कि एनपीए के इस अंधकार से रोशनी कब और कैसे मिलेगी? दरअसल, बैंकों की बुनियाद को कमजोर करने में बढ़ता एनपीए एक बड़ा कारक है। बैंकों के बढ़ते एनपीए को लेकर सरकार और रिजर्व बैंक भी चिंता जाहिर...
More »नकली अकल की असल चुनौती-- हरजिंदर
यह हमेशा ही होता रहा है। बदलाव जब दरवाजा खटखटाता है, तो उम्मीदें कम बनती हैं, आशंकाएं ज्यादा घेरती हैं। उम्मीद बांधने वाले कम होते हैं, परेशान होने वाले ज्यादा। हालांकि यह कहना भी सही नहीं है कि कृत्रिम बुद्धि यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस या एआई हमारा दरवाजा खटखटा रही है। दरअसल, वह बहुत चुपके से हमारे जीवन में प्रवेश कर चुकी है। यह उसका शैशव काल है, इसलिए फिलहाल हम...
More »बुनियादी ढांचे की बदलती परिभाषा-- नंदन नीलेकणि
अगर बाल्टी में छेद हो, तो इस धरती का पूरा पानी भी उसे कभी नहीं भर सकता। वित्त मंत्री को न सिर्फ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बौद्धिकता को प्रोत्साहित करने के लिए फंड मुहैया करना होगा, बल्कि हाशिये के लोगों को भी देखना होगा। साफ है, हमें अपनी बुनियादी समस्याओं पर भी उतना ही ध्यान देने की जरूरत है, जितना महत्वाकांक्षी बड़ी परियोजनाओं पर। दोनों सिरों को साधना अब कोई...
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