डाउन टू अर्थ, 24 फरवरी वैज्ञानिकों का मानना है कि ‘बायोचार’ सदियों से लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली एक पारंपरिक कृषि पद्धति रही है। कृषि और पेड़ों का कचरा जैसे कार्बनिक पदार्थों को जलाने से बना चारकोल जैसे पदार्थ को बायोचार कहते हैं। वैज्ञानिकों ने जलवायु-स्मार्ट कृषि (सीएसए) अभ्यास के रूप में इसकी क्षमता का विश्लेषण करने के लिए बायोचार पर दुनिया भर के लगभग 600 अध्ययनों में व्याप्त आंकड़ों को...
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कितने काम की है बेमौसमी गर्मी से जूझते किसानों को 'अतिरिक्त सिंचाई' की सलाह?
डाउन टू अर्थ, 23 फरवरी फरवरी माह में पड़ अप्रत्याशित गर्मी को देखते कृषि वैज्ञानिक किसानों को एक अतिरिक्त सिंचाई की सलाह दे रहे हैं। इससे जहां भूजल स्तर को लेकर चिंता जताई जा रही है, वहीं वे किसान अधिक परेशान हैं, जहां सिंचाई के इंतजाम हैं ही नहीं। डाउन टू अर्थ ने पंजाब और मध्य प्रदेश के कुछ किसानों से बात की। पंजाब के जालंधर जिले के किसान दो दिन से...
More »गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदानों में रह रहे 7 करोड़ लोगों पर मंडरा रहा है आर्सेनिक और फ्लोराइड का खतरा
डाउन टू अर्थ, 15 फरवरी पश्चिम बंगाल में जादवपुर विश्वविद्यालय के पर्यावरण वैज्ञानिक डॉक्टर तारित रॉयचौधरी ने चेताया है कि अगर प्रभावी रणनीति न अपनाई गई तो आर्सेनिक और फ्लोराइड प्रदूषण देश में गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। डॉक्टर तारित रॉयचौधरी का कहना है कि आर्सेनिक प्रदूषण के मामले में पश्चिम बंगाल की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। रॉयचौधरी...
More »मुजफ्फरनगर में दूषित घरेलू सीवेज काली नदी को कर रहा गंदा
डाउन टू अर्थ, 15 फरवरी काली नदी में मिलने से पहले बेगराजपुर नाले में डाला जा रहा दूषित घरेलू सीवेज प्रदूषण का प्रमुख कारण है। यह नाला मुजफ्फरनगर का मुख्य नाला है। हालांकि यह कहा गया है कि एक बार प्रस्तावित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के चालू हो जाने के बाद मुजफ्फरनगर के इस मुख्य नाले में बीओडी और सीओडी के स्तर में उल्लेखनीय कमी आ जाएगी। यह जानकारी संयुक्त समिति नेशनल...
More »भारत में कोविड संक्रमण आधिकारिक आंकड़ों से 17 गुना अधिक: बीएचयू अध्ययन
द वायर, 9 फरवरी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि भारत में कोविड-19 संक्रमण (रिपोर्ट न किए गए और गैर-लक्षण वाले [Asymptomatic] मामलों समेत) के वास्तविक मामलों की संख्या 4.5 करोड़ के आधिकारिक आंकड़े से 17 गुना अधिक हो सकती है. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, अध्ययन में देश के कई अन्य संस्थानों के वैज्ञानिक भी शामिल थे. इसका प्रकाशन...
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