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फंसे श्रमिकों की सूचना न देने से सीआईसी नाराज़, श्रम मंत्रालय को डेटा अपडेट करने को कहा

-द वायर,  कोरोना वायरस को लेकर देश में लॉकडाउन के चलते दूसरे राज्यों में फंसे श्रमिकों के संबंध में सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत जानकारी देने से मना करने पर केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने नाराजगी जाहिर की और श्रम मंत्रालय को अपनी वेबसाइट पर इस संबंध में अधिक से अधिक डाटा अपलोड करने के लिए कहा है. केंद्रीय सूचना आयुक्त वनजा एन. सरना ने मुख्य श्रम आयुक्त (सीएलसी) कार्यालय...

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देशवासियों के नाम लिखी चिट्ठी पढ़िए

आज से एक साल पहले भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक नया स्वर्णिम अध्याय जुड़ा. देश में दशकों बाद पूर्ण बहुमत की किसी सरकार को लगातार दूसरी बार जनता ने ज़िम्मेदारी सौंपी थी. इस अध्याय को रचने में आपकी बहुत बड़ी भूमिका रही है. ऐसे में आज का यह दिन मेरे लिए, अवसर है आपको नमन करने का, भारत और भारतीय लोकतन्त्र के प्रति आपकी इस निष्ठा को प्रणाम करने...

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लॉकडाउन: राष्ट्र की रेल और श्रमिक का शरीर

- द वायर, ‘यह हादसा कतई नहीं…’ अंग्रेज़ी अखबार टेलीग्राफ की यह सुर्खी एक सच्चे दिल से निकली चीख है. रुंधे गले से निकली यह चीख एक अधूरा वाक्य है. वाक्य पूरा यही हो सकता है- ‘यह हादसा कतई नहीं, हत्या है.’ हत्या किसने की? हत्यारा निश्चय ही वह ड्राइवर नहीं है, जो मालगाड़ी की रफ्तार को काबू नहीं कर सकता था जब वह रेलवे लाइन पर सिर टिकाए, गहरी नींद में...

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क्या मजदूरों के खाते में पहुंच गए 1,000 से 6,000 रुपए?

-डाउन टू अर्थ, कोरोनावायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देश भर में किए गए लॉकडाउन के बाद मजदूरों में अफरा तफरी मच गई। इसके चलते सरकार ने तुरत-फुरत में कई घोषणाएं की। इसमें एक घोषणा थी, मजदूरों को आर्थिक सहायता दी जाएगी। लेकिन क्या मजदूरों को यह पैसा मिल पाया, किस कानून के तहत यह पैसा दिया गया, क्या पहले से इस कानून की पालना सही तरीके से...

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सरकार जानती है, मजदूर बुरा नहीं मानते। लौट कर आएंगे, और कहां जाएंगे!

-जनपथ, श्रम, उत्पादन और निर्माण की प्रमुख धुरी है. श्रमिकों के बगैर इस दुनिया के गढ़े जाने की कल्पना नहीं की जा सकती. बावजूद इसके, पूंजीवादी व्यवस्था में श्रमिक हाशिये पर हैं. हर आने वाली सरकार ने श्रम कानूनों को लघु से लघुतर बनाया है. कार्यस्थलों पर सुरक्षा व्यवस्थाओं के अभाव में दुर्घटनाओं में मजदूरों का मरना बदस्तूर जारी है. बुनियादी सुविधाओं की मांग, हड़ताल, यूनियन, सब जैसे बीते जमाने की बातें...

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