-आउटलुक, भारत ने विकासक्रम में अपनी संस्कृति और अध्यात्म की वृहत परम्परा का विकास तो किया ही साथ ज्ञान, विज्ञान, कला तथा उद्यम की ऐसी शैलियों का निर्माण किया जो भारत की विशिष्ट पहचान बनीं। इन शैलियों का उद्भव देशज था लेकिन पहुंच राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय। इसी निर्मित हुयी अर्थव्यवस्था ने भारत में नगरीय क्रांतियों को संपन्न किया और गांवों को भी रिपब्लिक की हैसियत तक पहुंचाया। शायद यही वजह है...
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भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन: 100 साल के सफ़र के पाँच पड़ावों ने बदला इतिहास
-बीबीसी, भारत में ही नहीं यूरोप या किसी अन्य महाद्वीप में आज कम्युनिस्ट आंदोलन बहुत मजबूत नहीं रह गया है. लेकिन इस दौरान इस विचारधारा की राजनीति भारत में अपने 100 साल पूरे कर लिए हैं. अब तक के इस सफ़र के पांच सबसे अहम पड़ाव और भारतीय राजनीति में उनके मायनों पर एक नज़र: 1. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की ताशकंद में स्थापना-कांग्रेस के साथ रिश्ते भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की शुरुआत 17 अक्टूबर, 1920...
More »बस्तर में 90 प्रतिशत लोग मानते हैं माओवाद का अंत गोली से नहीं बातचीत से होगा
-द प्रिंट, माओवाद का केंद्र बन चुके बस्तर क्षेत्र के 90 प्रतिशत से अधिक लोगों का कहना है कि यह एक राजनैतिक समस्या है जिसका समाधान भी सियासी गलियारे से ही निकलेगा. लोगों का कहना है कि नक्सली समस्या के अंत के लिए पुलिस, नक्सली और जनता को एक साथ आना पड़ेगा. पिछले डेढ़ महीने के दौरान हिंदी के अलावा स्थानीय गोंडी और हल्बी भाषा में किये गए एक ई जनमत सर्वेक्षण...
More »किसानों के विरोध के बीच लोकसभा में कृषि से जुड़े विधेयक पेश, कृषि मंत्री ने कहा- MSP के प्रावधानों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा
-गांव कनेक्शन, संसद के मानसून सत्र के पहले दिन कृषि से जुडे़ तीन विधेयक लोकसभा में पेश किये गये। विपक्ष ने किसान विरोधी बताकर इनका विरोध किया लेकिन कृषि मंत्री ने कहा कि ये विधेयक किसानों की स्थिति बदलेंगे और इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के प्रावधानों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। देशभर में किसान पहले से ही इन अध्यादेशों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री...
More »2020 में हम भारतीयों को 1920 के इटली को जानने की जरूरत क्यों है?
-सत्याग्रह, मैं जीवनियां खूब पढ़ता हूं. इनमें बहुत सी विदेशी हस्तियों की होती हैं जो उनके देश, काल और परिस्थितियों के बारे में बताती हैं. हाल ही में मैंने कनाडाई विद्वान फाबियो फर्नांडो रिजी की किताब ‘बेनेडेट्टो क्रोसे एंड इटैलियन फासिज्म’ खत्म की है. इस किताब में एक महान दार्शनिक की जीवनी के सहारे उस दौर की एक बड़ी सच्चाई बताई गई है. रिजी की किताब पढ़ने के बाद मुझे 1920 के...
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