कहते हैं, शब्दों की अपनी दुनिया होती है। कवि और कहानीकार शब्दों के जरिए हमें किसी और दुनिया में ले जाते हैं। फिर कानून रचने वाले क्यों पीछे रहें? नए बाल मजदूरी कानून का प्रयास कुछ ऐसा ही है। यह कानून कहता है कि छह से चौदह वर्ष के बच्चे स्कूल से घर लौट कर किसी ‘पारिवारिक उद्यम' में हाथ बंटाएं तो इसे मजदूरी नहीं माना जाएगा। इस सुघड़ तर्क...
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नेताओं और अफसरों ने भी सीएनटी एक्ट का उल्लंघन कर खरीदी जमीन
रांची : सीएनटी एक्ट का उल्लंघन कर जमीन खरीदने में राज्य के नेता और अफसर भी शामिल हैं. राज्य के करीब सभी राजनीतिक दलों से संबद्ध नेताओं और सरकार के वरीय अफसरों ने रांची जिले के विभिन्न क्षेत्रों में आदिवासी जमीन खरीदी है. कई नेताओं व अफसरों ने अपने नाम पर भूमि की खरीद की है, तो कई ने रिश्तेदारों के नाम पर. नेताओं व अफसरों...
More »बहुत दूर दिखती है मंजिल, सतत विकास सूचकांक में भारत 110वें स्थान पर
सतत विकास वैश्विक सामाजिक प्रगति रिपोर्ट में भारत के 98वें स्थान (133 देशों में) पर होने की निराशाजनक खबर के बाद अब चिंताजनक सूचना यह आयी है कि सतत विकास सूचकांक में हमारा देश 110वें (149 देशों में) पायदान पर खड़ा है. वर्ष 2030 तक गरीबी, भूख, अशिक्षा से मुक्ति के साथ बेहतर पर्यावरण का वैश्विक लक्ष्य पाने के हमारे प्रयासों पर यह एक गंभीर टिप्पणी है. इस रिपोर्ट की मुख्य...
More »कुंजी-संस्कृति में बंद हो गई शिक्षा व्यवस्था-- अनुराग बेहर
मेरे स्कूल के दिनों में शायद ही कोई 'कुंजी' के साथ दिखना चाहता था। कुंजी किताबों का सार रूप होती थी, जो यह कहकर बेची जाती थी कि उसे पढ़ना परीक्षा में पास होने की गारंटी है। उसमें आमतौर पर ऐसे सवाल होते थे, जिनके परीक्षा में आने की संभावना होती थी। पिछले 30 वर्षों में यह कुंजी खत्म नहीं हुई है, अलबत्ता उनकी संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है।...
More »इतना काफी नहीं कर्मचारियों के लिए --- वरुण गांधी
कमजोर सेवा और कम उत्पादकता के कारण आम आदमी ही नहीं, निवेशक भी हमारी नौकरशाही की व्यवस्था को लेकर अच्छी राय नहीं रखते। फिर भी, इस सच्चाई को अनदेखा कर दिया जाता है कि सरकारी कर्मचारी, खासतौर से ऊंचे दर्जे के कर्मी, निजी क्षेत्र के कर्मियों के मुकाबले कम वेतन पर काम करने को मजबूर हैं। मसलन, 25 साल का अनुभव रखने वाले सरकारी डॉक्टर को औसतन 2.1 से 2.8...
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