नई दिल्ली: देश के 24 उच्च न्यायालय के हर न्यायाधीश के पास लगभग 4,500 मामले लंबित पड़े हुए हैं वहीं निचली अदालतों के प्रत्येक न्यायाधीश को लगभग 1,300 लंबित मामलों का निपटारा करना है. कानून मंत्रालय ने इसकी जानकारी दी है. राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) के अनुसार, 2018 के अंत में, जिला और निचली अदालतों में 2.91 करोड़ मामले लंबित थे जबकि 24 उच्च न्यायालय में 47.68 लाख मामले लंबित...
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प्राथमिक शिक्षा : तीन सालों में डेढ़ गुणा से ज्यादा बढ़ी है ड्रॉपआउट रेट
छब्बीस जनवरी की परेड में रंग-बिरंगे कपड़ों में हिस्सेदारी करते स्कूली बच्चों की तस्वीरें जब आप टेलीविजन पर देख रहे होंगे तो देश में प्राथमिक स्तर की शिक्षा के हालात बयान करती दो नई रिपोर्टस् सार्वजनिक जनपद में आ चुकी हैं. प्राथमिक स्तर की शिक्षा के सार्वीकरण के मोर्चे पर एक रिपोर्ट से अच्छी खबर निकलती है तो दूसरी रिपोर्ट से निकलते संकेत खतरे की घंटी हैं. इस न्यूज एलर्ट में...
More »आपराधिक मानहानि क़ानून ख़त्म होना चाहिए, राजद्रोह क़ानून की हो समीक्षा: जस्टिस लोकुर
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट से 30 दिसंबर को सेवानिवृत्त हुए जस्टिस मदन बी लोकुर ने बुधवार को कहा कि आपराधिक मानहानि को अपराध के रूप में परिभाषित करने वाले कानून को खत्म किया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि राजद्रोह से जुड़ी धारा 124-ए की समीक्षा की आवश्यकता है. क़ानून और न्यायपालिका पर आधारित न्यूज़ पोर्टल ‘द लीफलेट' की ओर से ‘भारतीय न्यायपालिका की दशा' विषय पर हुए एक कार्यक्रम...
More »क्यों मोदी सरकार सूचना आयुक्त पद के लिए नौकरशाहों को तरजीह दे रही है- धीरज मिश्रा
नई दिल्ली: बीते एक जनवरी 2019 को केंद्रीय सूचना आयोग में चार सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की गई. चारों लोग रिटायर्ड सरकारी बाबू (पूर्व नौकरशाह या ब्यूरोक्रेट) हैं. आरटीआई कानून की धारा 12 (5) के तहत विधि, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सामाजिक सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता, संचार मीडिया, प्रशासन या शासन के क्षेत्र से लोगों की नियुक्ति बतौर सूचना आयुक्त किया जाना चाहिए. हालांकि मोदी सरकार ने सिर्फ पूर्व नौकरशाह को ही इस...
More »छत्तीसगढ़: ढाई साल में लगभग तीन हजार महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार
रायपुर: छत्तीसगढ़ में पिछले ढाई साल में लगभग तीन हजार महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हुईं और पांच हजार से ज्यादा महिलाओं ने हेल्पलाइन के माध्यम से मदद मांगी. ये सभी अब निर्भया फंड से बनी महिला हेल्प लाईन (181) के माध्यम से अपनी लड़ाई लड़ रही हैं. हालांकि ऐसी महिलाओं की संख्या का अंदाज लगाना मुश्किल है जो मायके और ससुराल की बदनामी के डर से सारे जुल्म चुपचाप सहती...
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