अक्सर कहा जाता है कि पिछले एक-डेढ़ दशक से देश में मध्य वर्ग का दायरा तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन ऐसा लगता नहीं कि सरकार की नीतियों में उसका कहीं कोई प्रतिनिधित्व है। एक मिसाल अफोर्डेबल हाउसिंग जैसे नारे की है, जिसमें निचले तबकों की जरूरतों को तो ध्यान में रखा जा रहा है, लेकिन मध्य वर्ग उसमें कोई जगह नहीं हासिल कर पाया है। नेशनल काउंसिल फॉर एप्लाइड...
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बिहार-झारखंड धान उत्पादन के नये अगुवा
एक समय था जब भारत इतना भी गेहूं-चावल नहीं उगा पाता था कि अपने लोगों का पेट भर सके. लेकिन दौर बदला और 60 के दशक में आयी हरित क्र ांति से भारत के भंडार अनाज से भरने लगे. इस सफलता में अगर सबसे ज्यादा पसीना किसी का बहा, तो वो थे पंजाब और हरियाणा के किसान. उत्तर-पश्चिमी भारत के ये छोटे राज्य अपने मेहनतकश किसानों के बूते पूरे भारत...
More »न्यायिक स्वतंत्रता को खतरा- एम के वेणु
राज्य के नीति-निर्देशक तत्व के अनुच्छेद 50 में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग रखने का निर्देश दिया गया है, ताकि उसकी स्वतंत्रता बनी रहे, जो संविधान के रखवाले की उसकी भूमिका के लिए आवश्यक है। अलबत्ता राज्य के हर अंग और लोकतंत्र के प्रत्येक सार्वजनिक पदाधिकारी की तरह न्यायपालिका भी एक संस्थान है और हर न्यायाधीश सार्वजनिक पदाधिकारी, जो राजनीतिक संप्रभुता-यानी जनता के प्रति जवाबदेह होता है। फर्क सिर्फ जवाबदेही...
More »शहरों के साथ गांवों में पसर रही शुगर और बीपी की बीमारी
बिहार में शुगर और हाइपरटेंशन के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. हैरानी की बात है कि ये दोनों बीमारियां राज्य के गंवई इलाकों में भी तेजी से पसर रही हैं. औसतन गांव और शहरों में यह बीमारी हर साल दस फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है. 15 ऐसे जिले हैं, जहां के ग्रामीण इलाकों में शुगर की बीमारी 20 फीसदी या उससे अधिक रफ्तार से बढ़...
More »अपराध की उम्र और हमारी समझ- कविता कृष्णन
जहां तक महिलाओं के अधिकार का सवाल है, 'सामान्य समझ' अक्सर गलत साबित होती है। इस मामले में हमें लीक से हटकर सोचने की जरूरत है, खास तौर पर बलात्कार के मामले में यह ज्यादा सच है। मोदी मंत्रिमंडल द्वारा किशोर न्याय कानून में संशोधन के प्रस्ताव का उदाहरण लें, जिसमें 16 से 18 वर्ष के किशोरों के खिलाफ मामला वयस्कों की अदालत में चलाए जाने और संगीन अपराधों में...
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