आठ साल की साजिदा इतनी डरी हुई है कि हम उससे बात करें, उससे पहले ही वह दौड़कर एक टेंट में छिप जाती है. यह टेंट उस राहत शिविर का हिस्सा है जो असम के बक्सा जिले में बेकी नदी के किनारे एक जगह पर लगाया गया है. साजिदा यहां अपने अब्बा और एक बहन के साथ रह रही है. उसकी मां और एक छोटी बहन दो मई को इलाके...
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गुजरात के विकास का सच- नीलांजन मुखोपाध्याय
चुनावी सरगर्मियों के बीच गुजरात में यह देखना दिलचस्प होगा कि वहां सामाजिक समावेश की दिशा में सरकार ने अब तक कौन-से कदम उठाए हैं। हाल के तमाम साक्षात्कारों में नरेंद्र मोदी यह दावा करते आए हैं कि वह अपने नागरिकों के साथ समान व्यवहार करेंगे। मगर गोधरा शहर से थोड़ी दूर रहने वाली तीन मुस्लिम लड़कियों की कहानी गुजरात सरकार के दावे से ठीक उलट है, जो इस चुनाव...
More »औरत के हक में नहीं- तस्लीमा नसरीन
लोकतंत्र बहुत ही सभ्य व्यवस्था है। लेकिन इस तंत्र में असभ्य और मूर्खों का भी ऐसा अबाध प्रवेश है कि कई बार लगता है, लोकतंत्र की स्थापना पर ही हमें रुक नहीं जाना चाहिए, बल्कि उसे और बेहतर करने के बारे में भी सोचना चाहिए। बचपन में मैंने दुर्गम गांवों के कुछ मतदाताओं को नाव चिह्न पर वोट देने जाते देखा था। वे सोचते थे कि नाव चिह्न पर वोट...
More »राजनीतिक शक्ति का प्रयोजन क्या है- रविभूषण
सोलहवें लोकसभा चुनाव की घोषणा के पूर्व अब तक के जो राजनीतिक दृश्य हैं, उनमें किसी कोने से भी यह मालूम नहीं होता कि राजनीति को गंभीरता से देखा-समझा जा रहा है. बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल यह है कि राजनीति से जुड़े लोग (नेता सहित) राजनीति को किन अर्थो-मूल्यों से जोड़ रहे हैं? क्यों कोई दल चुनाव में अपने प्रत्याशियों को खड़ा करता है? किसी भी अन्य राजनीतिक दल से कोई...
More »भय पैदा करने वाला समाज- सुभाषिनी अली
नवंबर और दिसंबर के महीनों में शामली, मेरठ और मुजफ्फरनगर में महिलाओं की बड़ी सभाएं आयोजित की गईं। यह काफी आश्चर्यजनक बात है, क्योंकि, खासतौर से ऐसे इलाकों में, महिलाएं सभाओं में बड़ी मुश्किल से जा पाती हैं। उनके घरवाले इन सभाओं से घबराते हैं कि कहीं इनमें आने-जाने की आदत पड़ गई और औरतों को अपनी समान समस्याओं पर अधिक और आपस के भेद पर कम ध्यान जाने लगा,...
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