आर्थिक मामलों की काबीना समिति की हाल की एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक साल 2019-20 में बिक्री के लिए तैयार खरीफ की तमाम फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य उत्पादन लागत से कम से कम 50 फीसद ज्यादा घोषित किया गया है. नये बजट के पेश होने के दो दिन पहले जारी इस आधिकारिक घोषणा से ऐसा जान पड़ता है मानो केंद्र की नयी सरकार ने अपना वादा निभाया है और किसानों को उनकी फसल...
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आर्थिक संकट की गहराई- अरुण कुमार
आर्थिक मोर्चे पर हमारा देश इस समय बाहरी और घरेलू, दोनों तरह की चुनौतियों से जूझ रहा है। अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों में अमेरिका-चीन, अमेरिका-यूरो जोन और अमेरिका-मेक्सिको के बीच जारी ‘ट्रेड वार' (कारोबारी जंग) महत्वपूर्ण तो हैं ही, भारत पर सीमा शुल्क लगाने संबंधी अमेरिकी चेतावनी भी खासा महत्व रखती है। अमेरिका ने ईरान, वेनेजुएला, रूस जैसे तेल-उत्पादक देशों पर भी प्रतिबंध लगा दिए हैं, जबकि इराक, सीरिया, यमन, लीबिया, नाइजीरिया,...
More »किसानों को मिले दीर्घकालिक हल-- आशुतोष चतुर्वेदी
मोदी सरकार की ओर से पेश किया गया अंतरिम बजट वैसे तो समाज के हर वर्ग को साधने वाला है, लेकिन यह छोटे किसानों पर विशेष मेहरबान है. अंतरिम वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने बजट में किसानों, मजदूरों और मध्य वर्ग को ध्यान में रखते हुए कई घोषणाओं का एलान किया. यह मौजूदा सरकार का अंतिम बजट था. वैसे तो अंतरिम बजट में अगली सरकार चुने जाने तक के खर्च...
More »समस्या की अनदेखी करते समाधान-- हिमांशु
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत ने कृषि संकट को राजनीतिक बहस के केंद्र में ला दिया है। इस चुनावी जीत के निश्चय ही कई कारक थे, लेकिन खेतिहरों की दुश्वारियां इन सबमें प्रमुख थीं। यह माना जाता है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी कृषि संकट को लेकर उदासीन रही है, बल्कि कुछ हद तक उसने इसे बढ़ाया ही है, लेकिन वास्तव में इस...
More »मोदी राज में किसान: डबल आमद या डबल आफत?
खेती-किसानी के मोर्चे पर केंद्र सरकार ने गुजरे चार सालों में क्या कुछ किया है, उसपर आप महज एक घंटे में राय बनाना चाहते हैं तो फिर यह पुस्तक आप ही के लिए है.(पुस्तक आप यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं) किसानी के मोर्चे पर केंद्र सरकार के हासिल-लाहासिल को परखने के तीन रास्ते हो सकते हैं. एक तो सरकार के वादों को परखना कि वे किस हद तक पूरे हैं. दूसरे, सरकार के दावों...
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