-न्यूजलॉन्ड्री, फिल्म निर्देशक बासू चटर्जी जिनका थोड़े समय पहले ही देहावसान हुआ, यथार्थ से जुड़ी फिल्में बनाने के लिए जाने जाते थे. उनकी कुछ कम प्रसिद्ध फिल्मों में से एक है 1986 में रिलीज हुई किराएदार. मुंबई में मकान किराए पर लेने की फ़ज़ीहत को दिखाती यह हिंदी सिनेमा की चंद फिल्मों में से एक है, जो एक किराएदार की अपने मकान मालिक से जद्दोजहद की कहानी कहती है. बल्कि फिल्म...
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गुरुग्राम : 'घर में ही रहें' की नसीहत के बीच सरकारी क्रूरता, 600 परिवार किये बेघर
-न्यूजक्लिक, "कहाँ तो तय था चराग़ाँ हरेक घर के लिये, कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये" दुष्यंत कुमार का यह शेर आज की स्थिति पर बिल्कुल सटीक बैठता है। सरकार का लोकसभा चुनाव में बहुत बड़ा वादा था कि जहाँ झुग्गी वहीं मकान, लेकिन इसके विपरीत वर्तमान महामारी के समय में दिल्ली-एनसीआर सहित कई राज्यों में अवैध अतिक्रमण के नाम पर लोगों को बेघर किया जा रहा है। बेघर करके उन्हें सड़कों...
More »“सरकार को डब्ल्यूएचओ की चिंता है, जबकि उसकी वजह से हमारे घर गिरे”
-न्यूजलॉन्ड्री, “झुग्गी-झोपड़ी वालों को इंसान ही ना समझ रहे, बताओ हम कहां जांएगे...अब कहां है मोदी और केजरीवाल, जो झुग्गीवालों को पक्के मकान देने के वादे कर रहे थे. ये सब डब्ल्यूएचओ का करा-धरा है, और कोई भी इसके खिलाफ बोल ना रहा. हमारी कोई सुनवाई नहीं हो रही है. जब तक हमारी तरफ काम नहीं शुरू होगा इनका काम भी हम नहीं होने देंगे.” ये आरोप बुधवार को आईटीओ के पास अन्ना नगर...
More »दिल्ली दंगा: पांच महीने बाद भी मुआवज़े की 700 याचिकाएं लंबित
-द वायर, उत्तर पूर्वी दिल्ली में इस साल फरवरी महीने में हुए सांप्रदायिक दंगों के पांच महीने गुजर जाने के बाद भी अब तक 700 मुआवजा याचिकाएं लंबित पड़ी हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रशासन के पास जून के अंत तक मुआवजे के लिए लगभग 3,200 याचिकाएं आईं, जिसमें से 1,700 को मंजूरी दी गई जबकि लगभग 700 याचिकाएं अभी भी लंबित हैं. एक अधिकारी ने बताया कि वहीं 900 से...
More »दाने-दाने को मोहताज हुए दिल्ली के मजदूर
-डाउन टू अर्थ, लगभग डेढ़ माह पहले पूरे देश का ध्यान महानगरों से अपने घर गांव लौट रहे मजदूरों की ओर था। डाउन टू अर्थ ने तब इन मजदूरों के साथ पैदल सफर किया, लेकिन समय के साथ इन मजदूरों को फिर से भुला दिया गया है। लॉकडाउन खुल चुका है। ऐसे में जो मजदूर अपने गांव नहीं जा पाए या जो गांव में काम न मिलने पर फिर से महानगर...
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