बड़े-बड़े सपने लेकर जिंदगी की शुरुआत करने वाले युवा जब हकीकत की बेरहम जमीन पर खुद को असुरक्षित महसूस करता है तो उसके अंदर हताशा घर करने लगती है। हताशा की ऐसी ही कई स्वनिर्मित वजहों के चलते प्रदेश में बड़ी संख्या में युवा हताशा की प्रवृत्ति का शिकार हो रहे हैं। यह हताशा उन्हें नशे की लत में धकेलने से लेकर जिंदगी से मोहभंग तक खींच ले जा रही...
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नकदी के जरिये कुपोषण से लड़ाई--- आलोक कुमार
हाल ही में प्रकाशित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकडे़ हमारा उत्साह नहीं बढ़ाते, खासकर तब, जब हम इनको भारत की आर्थिक प्रगति के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं। भारत में प्रत्येक तीसरा शिशु कुपोषित है और मातृत्व-काल की हरेक दूसरी महिला अनीमिया से ग्रसित है। और ऐसा तब है, जब हम कुपोषण से सभी मोर्चों पर लड़ रहे हैं- स्वास्थ्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जरिये, स्वच्छता के...
More »बाढ़ जनित समस्या का प्रबंधन-- डा. गोपाल कृष्ण
आम तौर पर सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं बाढ़ जनित समस्या से चकित होने का स्वांग करती हैं. हिमालय के गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी घाटी जैसे क्षेत्रों में सदियों से नदी के भूमि बनाने के अपने नैसर्गिक कार्य के लिए बाढ़ का जन्म होता रहा है. मौजूदा बाढ़ में खबरों के अनुसार अभी तक बिहार में 18 जिलों में 200 से अधिक लोग मौत के शिकार हुए हैं. पश्चिम...
More »बच्चों को बीमार कर रही हैं बड़ों की उम्मीदें और दबाव- ऋतु सारस्वत
अवसाद अब बड़ों की व्याधि नहीं रही, वह बच्चों को भी गिरफ्त में ले रही है। हाल ही में ‘दक्षिण पूर्व एशिया में किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति : कार्रवाई का सबूत' नामक विश्व स्वास्थ्य की रिपोर्ट ने यह खुलासा किया कि भारत में 13 से 15 साल की उम्र के हर चार बच्चों में से एक बच्चा अवसाद से ग्रस्त है और आठ प्रतिशत किशोर चिंता की वजह...
More »फिजूलखर्ची से ध्वस्त होती अर्थव्यवस्था-- एस. श्रीनिवासन
मध्य वर्ग अपने राज्य के बजट को आमतौर पर नजरंदाज करता है। उसके लिए यह एक सालाना कवायद है, जो उसके रोजमर्रा के जीवन से बहुत ज्यादा वास्ता नहीं रखती। राजनीतिक टिप्पणीकार और मीडिया भी इसे लेकर एक तरह से उदासीन रहते हैं। मगर राज्य के बजट महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये बताते हैं कि सियासी दलों ने चुनाव के दरम्यान जो वादा किया था, उसे वे पूरा कर रहे हैं...
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