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वंशवाद से व्यक्तिवाद तक-रामचंद्र गुहा

दिसंबर 2008 में मैं आईआईटी मद्रास में भारतीय लोकतंत्र की अपूर्णताओं पर बोल रहा था। इन्हीं में से एक बिंदु था राजनीतिक वंशवाद। मेरे बाद कनिमोझी का व्याख्यान था। उन्होंने मेरे वक्तव्य के कुछ अंशों का खंडन करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि मैं युवा भारतीयों को अपनी पसंद का कॅरियर चुनने से रोक रहा हूं। यदि किसी क्रिकेटर का बेटा क्रिकेटर बन सकता है और किसी संगीतकार की...

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कितना खतरनाक है अन्ना का सपना!-- पुण्य प्रसून वाजपेयी

अगर यह आजादी का दूसरा आंदोलन है, तो क्या आप दूसरे महात्मा हैं. मैं तो महात्मा गांधी के पांव की धूल भी नहीं हूं. लेकिन एक बात कहूंगा भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने जो एहसान हम देशवासियों पर छोड़ा है, उसका एक अंश भी अगर हम देश को बनाने में चुका दें, तो बहुत बड़ी बात होगी. और हमारा संघर्ष यही है. आमरण अनशन तोड़ने के बाद अन्ना हजारे के...

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राजनीतिक हकीकत के छह सूत्र --- योगेन्द्र यादव

तो बिहार में क्या होगा? अगर आप छह दिन बिहार में घूम कर आयें तो दिल्ली में हर कोई इसी सवाल से आपका स्वागत करता है. सवाल के पीछे  चुनावी सटोरिये  की गिद्ध दृष्टि या फ़िर राजनीति के कीड़े की उत्सुकता तो होती ही है. लेकिन बिहार की बात निकलते ही कहीं एक औपनिवेशिक दर्प टपकने लगता है. आप कितना ही कह लीजिये कि राजनीतिक चेतना में बिहार अधिकांश देश से...

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40 धड़कनें थम गई पर नहीं धड़की मिल

भागलपुर [आशीष]। साल-दर-साल भूख और बदहाली का दंश झेल रहे बिहार स्पन सिल्क मिल के कर्मचारियों के मुरझाए चेहरों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मिल को दोबारा खोलने की घोषणा भी मुस्कान नहीं लौटा सकी। सपनों को पल-पल टूटते हुए देखने वाले ये मिल कर्मचारी अब भगवान से मौत की मुराद मांग रहे हैं। मौत के लिए मनुहार करने वाले कर्मचारियों का तर्क है कि रोज-रोज मरने से अच्छा...

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बढ़ रहा है जनता में जनाक्रोश

नई दिल्ली [उमेश चतुर्वेदी]। महंगाई की आग के खिलाफ पाच जुलाई के भारत बंद पर कारपोरेट तरीके से मूल्याकन के जरिए भले ही लाख सवाल उठाए जा रहे हों, लेकिन यह सच है कि इस बंद ने महंगाई की आग से झुलस रहे अधिसंख्य भारतीयों के गुस्से और क्षोभ को ही अभिव्यक्ति दी है। इस क्षोभ और गुस्से का महत्व इसलिए कम नहीं हो जाता कि इससे तेरह हजार या बीस...

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