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विद्रोह के केंद्र में दिन और रातें

जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता और ईपीडब्ल्यू के सलाहकार संपादक गौतम नवलखा तथा स्वीडिश पत्रकार जॉन मिर्डल कुछ समय पहले भारत में माओवाद के प्रभाव वाले इलाकों में गए थे, जिसके दौरान उन्होंने भाकपा माओवादी के महासचिव गणपति से भी मुलाकात की थी. इस यात्रा से लौटने के बाद गौतम ने यह लंबा आलेख लिखा है, जिसमें वे न सिर्फ ऑपरेशन ग्रीन हंट के निहितार्थों की गहराई से पड़ताल करते हैं, बल्कि माओवादी...

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महिला सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय मिशन

नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर केंद्र ने सोमवार को कहा कि सरकार महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए राष्टीय मिशन शुरू करने के प्रति वचनबद्ध है और इसके लिए महिला केंद्रित और संबंधित विभिन्न सरकारी कार्यक्रम समेकित रूप से चलाए जाएंगे। महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ ने सोमवार को राज्यसभा में दिए बयान में कहा कि महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक सशक्तिकरण पर विशेष जोर दिया जाएगा।...

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उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों को धन दे केंद्र

पटना। आंतरिक सुरक्षा के मसले पर दिल्ली में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की ओर से बुलाए गए मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को कहा कि उग्रवाद प्रभावित सभी पंचायतों में प्रत्यर्पण एवं पुनर्वास कार्यक्रम चलाने के लिए केंद्र सरकार बिहार को अतिरिक्त सहायता उपलब्ध कराये। मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार में वामपंथी उग्रवाद नियंत्रण में है। उन्होंने कहा कि उग्रवाद प्रभावित आठ जिलों के 65 पंचायतों में प्रत्यर्पण एवं पुनर्वास नीति लागू की...

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विकसित भारत के लिए बिहार का विकास जरूरी : मुख्यमंत्री

पटना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि गौरवशाली अतीत के बावजूद विकास के मामले में बिहार के साथ हमेशा भेदभाव होता रहा। भारत को यदि विकसित राष्ट्र बनना है तो बिहार का विकास अपरिहार्य है। मंगलवार को यहां आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद, डा.शकील अहमद, सांसद शिवानंद तिवारी, शत्रुघ्न सिन्हा, माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य, मुचकुंद दुबे, पुलिस महानिदेशक आनंद शंकर, रजी अहमद ने...

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कोसी का कहर

कोसी का कहर अगस्त 2008 में बिहार के एक बड़े इलाके पर टूट पड़ा। कोसी को कभी बिहार का शोक कहा जाता था। जब यह नदी पूर्णिया जिले में बहती थी तब एक कहावत बड़ी चर्चित थी कि ‘जहर खाओ, न माहुर खाओ, मरना है तो पूर्णिया जाओ।’ इस नदी का यह स्वभाव था कि वह अपना रास्ता बदलती रहती थी। यह कब अपना रुख बदल लेगी, इसका अंदाजा लगाना...

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