बाल श्रम हमारे समय की एक दुखद सच्चई है. तरक्की के तमाम दावों के बावजूद आज हम उद्योग-धंधों से लेकर घर के भीतर तक पूरी दुनिया में किसी न किसी रूप में बाल श्रमिकों को देख सकते हैं. इसकी रोकथाम के लिए बेशक कई कानूनी प्रावधान किये गये हों, लेकिन पिछड़े क्या विकसित कहे जाने वाले समाजों तक में लाखों बच्चों का बचपन पेट की भूख मिटाने में दफन हो जाता है. वर्ल्ड...
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कब आएगा भाषाई स्वराज- गिरिराज किशोर
जनसत्ता 22 मार्च, 2013: भाषा के प्रश्न को राजनीति के पुरोधाओं ने इस देश का रिसता नासूर बना दिया। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा संबंधी नियमावली में संशोधन ने उस नासूर में फिर नश्तर लगा दिया। गांधीजी जानते थे कि भाषा का सवाल इस मुल्क की दुखती रग हमेशा बना रहेगा। शायद इसीलिए उन्होंने 1909 में ‘हिंद स्वराज\' में अपने स्वभाव के बरखिलाफ सख्त चेतावनी दी थी कि...
More »अपनी भाषाओं का विस्थापन-मृणालिनी शर्मा
जनसत्ता 12 मार्च, 2013: आखिर संघ लोक सेवा आयोग पर अंग्रेजी का झंडा फहर ही गया। 2013 में संघ की भारतीय प्रशासनिक और अन्य केंद्रीय सेवाओं में भर्ती के लिए सिविल सेवा परीक्षा के रूप में होने वाली संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा से भारतीय भाषाओं का परचा आखिर गायब हो गया। यों इसकी शुरुआत 2011 में ही प्रारंभिक परीक्षा (नया नाम: अभिक्षमता परीक्षण उर्फ एप्टिट्यूट टेस्ट) में कर दी...
More »बिल से दिल तक- प्रियदर्शन
लोकपाल बिल से बिजली के बिल तक चली आई अरविंद केजरीवाल की राजनीति को अभी कई कड़ी और कहीं बड़ी बाधाओं से भिड़ना है कल तक कानूनी नुक्तों और अदालतों का सहारा लेने वाले अरविंद केजरीवाल ने अपने पहले राजनीतिक कार्यक्रम की शुरुआत दिल्ली में बिजली के कटे हुए कनेक्शन जोड़कर की. अगला हमला सीधे सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर किया और डीएलएफ के साथ-साथ हरियाणा सरकार को भी...
More »विरले होते हैं दयाशंकर जैसे अफसर
भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रहे दयाशंकर की ऑस्ट्रेलिया में मरने की खबर से एक ऐसे ईमानदार चरित्रबल वाले अधिकारी की याद ताजा हो उठी है, जिसने अपने कर्तव्यपरायणता से यह सिद्ध किया कि ईमानदार अफसर मुश्किल परिस्थितियों का भी कैसे डट कर मुकाबला करते हैं. दयाशंकर ने 80 के दशक में स्मगलिंग की दुनिया में बादशाहत कायम कर चुके अपराधियों को उस खौफ से रू-ब-रू करवाया, जो विरले ही देखने...
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