आज जब देशभक्ति पर तर्कशील विमर्श असंभव होता जा रहा है और भावुकता दिमागों पर हावी है, ऐसे में राष्ट्र को एक मातृदेवी का रूप देने की तर्कसंगत व्याख्या सामयिक है। संविधान के तहत धर्मनिरपेक्ष घोषित देश में राष्ट्रभक्ति को भारतमाता की देवीस्वरूपा प्रतिमा की तरह जयकारे बुलवाने और प्रणाम करने की जिद पर गौर करना चाहिए, जो बहुलतामय भारत के राज-समाज में प्रभु के विभिन्न् स्वरूपों को मानने वालों...
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दकियानूसी कैसे हो गई देशभक्ति? - गिरीश्वर मिश्र
वैश्वीकरण के दौर में देश और राष्ट्र जैसे शब्द पुराने पड़ते जा रहे हैं। अंग्रेजी का कंट्री शब्द गंवई क्षेत्र की ओर संकेत करता है। नेशन एक अमूर्त विचार है, जिसका स्वरूप उसके मानने वालों के अपने नजरिए पर ही निर्भर करता है। यह भी एक प्रचलित मत है कि नेशनलिज्म का कोई एक अर्थ नहीं होता, वह एक बहुलार्थी शब्द है जिसका उपयोग किसी भी ढंग से किया जा...
More »बड़ा सवाल बीमार बैंकों का है- प्रमोद जोशी
विडंबना है कि जब देश के 17 सरकारी बैंकों के कंसोर्शियम ने सुप्रीम कोर्ट में रंगीले उद्योगपति विजय माल्या के देश छोड़ने पर रोक लगाने की मांग की, तब तक माल्या देश छोड़ चुके थे. अब सवाल बैंकों से किया जाना चाहिए कि उन्होंने क्या सोच कर माल्या को कर्जा दिया था? हाल में देश के 29 बैंकों से जुड़े कुछ तथ्य सामने आये, तो हैरत हुई कि यह...
More »हिंसा झेलतीं महिलाओं का मौन- आकार पटेल
आठ मार्च पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस अवसर पर मुझे महिलाओं के विषय में कुछ लिखना उपयुक्त लगा, जो हमारी आबादी में सर्वाधिक कमजोर तथा भेदभाव की शिकार रही हैं. अपने भाषण में जेएनयू का बचाव करते हुए उसके छात्र नेता कन्हैया कुमार ने दो ऐसी बातें कहीं, जो मुझे मालूम न थीं. पहली, यह एक ऐसा विश्वविद्यालय है, जिसके छात्र...
More »मोदी के बताए मार्ग से गांव की ओर मुड़ने को मजबूर हुए जेटली-- विनोद अग्निहोत्री
अपने पिछले दो बजटों से उलट मोदी सरकार ने तीसरे बजट में सरकारी खजाने का पिटारा गांव और किसान की तरफ खोलते हुए अपनी सूट बूट की सरकार की छवि बदलने की जो कोशिश की है,वह खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर की गई है। बजट भले ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बनाया हो, लेकिन इस बजट के लिए विशेष इनपुट खुद प्रधानमंत्री ने अपने वित्त मंत्री को...
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