जनसत्ता, 10 दिसंबर,2011: कुछ घटनाएं महत्त्वपूर्ण होती हैं, पर सरकार और कई बार समाज भी उनका उतना संज्ञान नहीं लेता जितना लिया जाना चाहिए। अगर किसी घटना को नजरअंदाज करने से काम चल सकता है तो लोग सोचते हैं कि चला लेना ज्यादा सुविधाजनक है। भले ही देश या समाज को कितना भी आघात क्यों न पहुंचे। मणिपुर हमारे देश के पूर्वोत्तर का महत्त्वपूर्ण प्रदेश है। जब मैं वहां गया...
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खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के खतरे- शरद यादव
खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की इजाजत का निर्णय केंद्र सरकार ने ऐसे समय किया जिस समय वह मूल्यवृद्धि और काले धन पर संसद में घिरी हुई थी। इसके साथ ही उसने विपक्ष के साथ टकराव का एक और मोर्चा खोल दिया है। उसके इस निर्णय की दो व्याख्याएं हो सकती हैं। पहली यह है कि केंद्र सरकार चाहती ही नहीं कि संसद सही तरीके से चले और वह टकराव...
More »बारहवीं योजना में स्वास्थ्य - राम प्रताप गुप्ता
पिछले दिनों सरकार ने बारहवीं पंचवर्षीय योजना का दृष्टिकोण पत्र जारी किया। आर्थिक विकास की ऊंची दर के बावजूद आम जनता विश्वसनीय स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है। इसका प्रमुख कारण यही है कि आज भी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर राष्ट्रीय आय का मात्र 1.2 प्रतिशत खर्च किया जाता है। नतीजतन लोगों को चिकित्सा व्यय का अधिकांश स्वयं वहन करना पड़ता है, जो उन्हें गरीबी रेखा से नीचे धकेल रहा है। सार्वजनिक...
More »मीडिया और पूंजी का स्वर्णमृग : मृणाल पाण्डे
एक बेहतरीन संपादक सेना के कमांडर की तरह होता है। उसकी नियुक्ति भले ही उसके चमत्कृत करने वाले निजी कौशल से संभव हुई हो, पर उसके बाद उसकी निजी बौद्धिक क्षमता से कहीं अधिक महत्व उसकी कुशल रणनीति और सैन्य-संचालन क्षमता का बन जाता है। हमारे संविधान ने सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी का समान हक दिया है, जिनमें मीडियाकर्मी भी शामिल हैं। उनके लिए (अमेरिका की तरह) अतिरिक्त आजादी का...
More »विकास का विद्रूप- सुनील
राहुल गांधी ने पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के नौजवानों को फटकारते हुए जब कहा कि कब तक महाराष्ट्र में भीख मांगोगे और पंजाब में मजदूरी करोगे, तो कई लोगों को यह बात नागवार गुजरी। उनकी भाषा शायद ठीक नहीं थी। आखिर देश के अंदर रोजी-रोटी के लिए लोगों के एक जगह से दूसरी जगह जाने को भीख मांगना तो नहीं कहा जा सकता। वे अपनी मेहनत की रोटी खाते हैं, भीख या...
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