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घर पहुंच कर भी कम नहीं हो रही बिहारी मज़दूरों की दुश्वारियां

-न्यूजक्लिक, इस सोमवार को बिहार के जहानाबाद जिले के सरता मध्य विद्यालय में क्वारंटीन में रह रहे मज़दूरों और स्थानीय लोगों के बीच झड़प हो गयी और इस झड़प में ग्रामीणों ने इन मज़दूरों पर रोड़े (पत्थर) चला दिये। इसमें एक प्रवासी मज़दूर अंबिका यादव का सिर फूट गया। बाद में पता करने पर इस झगड़े की वजह यह मालूम हो गयी कि स्कूल में बने उप क्वारंटीन सेंटर पर शौचालय...

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क्यों यह सबसे मुनासिब वक्त है एक राष्ट्रीय सरकार के गठन का

-न्यूजलॉन्ड्री, सरकार बनाने के लिए वर्तमान में बहुमत का क्या मतलब है. पहला कि सत्ताधारी दल को कभी भी कुल आबादी का बहुमत नहीं होता है. चुनाव में कुल मतदान में सबसे ज्यादा मत हासिल करने के कारण उसे बहुमत मान लिया जाता है. संसदीय लोकतंत्र में बहुमत एक विज्ञापन की तरह होता है. वास्तविकता से उसका बहुत दूर का रिश्ता होता है. मसलन 1952 के पहले चुनाव में केवल 17,32,13,635 मतदाता...

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मोदी के 20 लाख करोड़ के पैकेज से मर रहे ग़रीब मज़दूरों का कितना भला होगा?

-बीबीसी, आप चाहें तो गिलास को आधा भरा देख सकते हैं और चाहें तो आधा ख़ाली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मंगलवार रात का राष्ट्र के नाम संदेश भी ऐसा ही है. आप चाहें तो ये देख सकते हैं कि उन्होंने बीस लाख करोड़ रुपए का पैकेज लाने का एलान कर दिया. हताश, निराश और एक अभूतपूर्व संकट से जूझते देश को एक नया नारा दिया कि इस संकट को कैसे मौक़े में...

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फसलों में टीबी की दवा का इस्तेमाल बंद करें: केंद्रीय संस्था

-डाउन टू अर्थ, सेंट्रल इंसेक्टिसाइड बोर्ड एंड रजिस्ट्रेशन कमेटी (केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति) के तहत रजिस्ट्रेशन कमेटी (आरसी) ने सिफारिश की है कि जहां जीवाणु (बैक्टेरियल) रोग नियंत्रण के लिए अन्य विकल्प मौजूद हो, वहां फसलों पर स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन जैसे एंटीबायोटिक्स का उपयोग तत्काल प्रभाव से और पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। अंतिम रिपोर्ट में स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट (9 प्रतिशत) और टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड (1 प्रतिशत) के उत्पादन, बिक्री...

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महान दार्शनिक जिद्दू कृष्णमूर्ति राष्ट्रवाद और धर्म को मनुष्यता के लिए खतरा क्यों मानते थे?

-सत्याग्रह, अंग्रेजी के मशहूर साहित्यकार टीएस इलियट ने भारतीय दार्शनिकों के बारे में कहा था, ‘महान भारतीय दार्शनिकों के सामने पश्चिम के दार्शनिक किसी स्कूल के बच्चों की मानिंद नज़र आते हैं.’ यह बात अगर बीती सदी पर लागू करें तो जिद्दू कृष्णमूर्ति बिलकुल इसी कड़ी का हिस्सा लगते हैं. हां, यह अलग बात है कि वे ‘राष्ट्रीय पहचान’ को नकारते थे! कृष्णमूर्ति ने जिस तरह स्थापित परंपराओं को किनारे कर...

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